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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६४५

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काशी . भग्नितीर्थ-अग्नीश्वर घाट। देखते है । दक्षिणभागमें देवसभा है वही विख्यात कुछ दूर पर विलोचनघाट है। वहां भी शिल्प पौर कोटिलिङ्गेश वरमूति वर्तमान है । वह लिङ्ग २ स्त कारकार्य शोभित सुन्दर देवालय बना है । ठक्त सकल सच है। लिङ्गका पङ्ग इस प्रकार गठित है कि देखते देवालयके बाहर भीतर. चारोदिक पनेक शिवलिङ्ग हो शत शत शिवलिङ्गका एकत्र अधिष्ठाम समझ रखे हैं। पड़ता है । मन्दिरके दक्षिण भागमें राजा वमार प्रति विलोचनघाटका प्राचीन नाम पिलपिलातीर्थ है। ष्ठित वाराणसी देवीको मूर्ति है। एतदिन इधर उधर काशीखण्डमें कहा है-गङ्गाके सहित मिलित हो गणेश, सूर्य, शीतला, हनूमान् प्रतिको मूर्ति भी सरस्वती, यमुना और नर्मदा वहां हास्य करती है। दृष्टिगोचर होती हैं। उसी पिलपिला तीर्थ में जो व्यक्ति मानकर पिटवाहादि त्रिलोचन मन्दिरके हार सम्मुख युम्ममन्दिर है। करता, उसकी फिर गयाम जानेका क्या प्रयोजन पड़ वहां बाहरसे भीतर तक पसंख्य देवमूर्ति विरान ता है ! पिलपिलातीर्थ में सामान्त पिण्डप्रदान कर करती हैं। उनका दृश्य देखते ही विस्मित होना विपिष्टपलिङ्ग दर्शन करनेसे कोटितीर्थ दर्थ नका फल लाभ होता है । सरस्वती, यमुना और नर्मदा तीन त्रिलोचन मन्दिरका बरामदा लाल रंगके पाठ 'पापविनाशिनी बिलोचनको दक्षिणदिक् विपिष्टप संभोंपर स्थापित है। उसका पटल (छत) विविध लिङ्गको स्नान कराने के लिये समवेत हुयी है। उस चिवसे चित्रित है। बरामदामें बड़ी घण्टा लटकती है। नदीवयने अपने अपने मामसे एक शिवलित प्रवेशद्वारके पाच वैदे गमें बृहत् खेत प्रस्तरको एक प्रतिष्ठा किया है। त्रिपिष्टपकी दषिपदिक् सरस्वती अबभमूर्ति है। वहां गणेशादि देवमूर्ति व्यतीत सिंख शवर, पश्चिमदिक् यमुनेश वर और पूर्वदिक मुखपद गुरु नानकशाहको प्रतिमा अक्ति है। वहां नरक नमंदेशवर हैं। उक्त तीन लिङ्गके दर्थ नसे महापुण्य और मृत्यु नदीका दृश्य बहुत अनोखा है। वहां इस मिलते हैं। (काशीखण ५०।५-११) बातका सुन्दर चित्र देख पड़ता-पापी मानवगण अद्यापि विलोचनकै निकट विसोचनघाटमें उन किस प्रकार दण्ड पाता और काल नदोके परपार सकस प्रतिमा विराज करती हैं। जानेको कैसे व्याकुल होता है। उता मन्दिरको छोड़ मङ्गलागौरीके दक्षिण चोरघाट है। उसके पारी