काशी दशावमेध और केदारनाथ के मध्य अनेक स्थानों "काशीके दर्शनसे सूर्य का मन अतिशय लोल हुवा पर कई देखनेको चौ है उनमें माधुनिक होते भी था। उसीसे सूर्यका नाम लोलार्क पड़ गया । स्वर्गीय पाशतोष-देवप्रतिष्ठित सत् दुलानीश्वर *दक्षिणदिक् असिसम के निकट लोनार्क (सूर्यमृति) मासक शिवलिङ्ग और उनका मन्दिर उल्लेखयोगा है। पस्थित हैं। वह सर्वदा काशीवासीका मङ्गल किया संख्या कर नहीं सकते काशीमें कितनी दूरी करते है । अग्रायण मासके रविवारको लोलार्क की देव प्रतिमायें हैं। गङ्गाके तौर प्रति घाटमें देवालय वार्षिको यात्रा करनेसे मानव पापमुम होता है। देण पड़ते हैं । उममें भग्नीश्वर के दक्षिण एवं चक बोलाकमङ्गममें स्नान करनेसे अमन्सकालके लिये सत्- पुष्करिणी के उत्तर साटाघाट, यमेश्वरघाट, धोषला. कर्म सिा हो जाता है."(कारण १५.) घाट और ओमठ हेख योगा है। रामो पहावा, ममतराय और मिथिलाधिपने गङ्गाके तीर चौकीघाट पर रुक्मे श्वरका मन्दिर सोनाक कुण्डका संस्कार कराया था। उसके निकट विस्तरं नागमतिमा विराज करती है। खोलाकं कुण्डको चारो ओर गणेशादि नानाविध गसौम घुमते ही दुरंसे एक दोना देख पड़ती है। देवमूर्ति हैं। कुण्डके दक्षिण तौर भट्रेश्वरका मन्दिर दोसाके प्रागै दशभुजा दुर्गाको मूर्ति है। वह क्या की बना है.। भट्रेश्वरका लिङ्ग भी पति वृहत् है। सुन्दर और कैसौ सुसज्जित है! पुण्यधाम धाराण सामें बहुत प्राचीन और अप्राचीन काशीको दुर्गाबाड़ी पति प्रसिद्ध है। काशीखण्ड, देवमूर्ति एवं पवित्र तीर्थ है। काशीखण में काम पाठसे समझते कि यहां दुर्गा मूर्ति बहुत दिनसे प्रति माचीम तीर्थका विवरण इस प्रकार दिया है- ठित है। वर्तमान दुर्गामन्दिर रानी भवानीके व्ययंसे "समस्त जगत्के मध्य वाराणसी पुरी पति पवित्र बना था । मन्दिरका बरामदा इस समयके सूबेदारका साम है। उसके भी मध्य गङ्गा पौर पसिसङ्गम पति- बनाया है। गय पवित्रतर है । मसिसङ्गमसे ज्यग्रीवतीर्थ अधिक्ष- दुर्गाबाड़ीकी सनसा देख पास पाना पड़ता है। तर पुस्यप्रद है। वर्धा विष्णु हयग्रीव रूपसे अवस्थान इसकी कोई संख्या मौं देश विदेशसे कितने तीर्थ करते हैं। सत श्ययोवतीर्थसे भी गनतीर्थ अधिक पुस्य- यावी जाते हैं। प्रत्यह मानो देवौके मन्दिर में महोत्सव प्रद है। वहां स्नान करमसे गजदामका फल मिलता है। प्रत्यय देवी पार्यतीकी प्रीतिक निमित्त शगवति है। गलतीर्थसे कोकावरातीर्थ पुण्यदायक है होता है। प्रति मङ्गलवारको देवौके उद्देशसे मेला यहाँ कोशावरा देवकी पूजा करनेसे फिर जन्म लेना सगता है। प्रतिवर्ष श्रावण मासमें मासबारको बड़ा मेशा जीता है। इसकी संख्या नहौं-उस समय कितने "दिलीपवर महादेवके निकट दिलोपती है। वह तीर्थयात्री हो जाते हैं। कोकावरातीर्थ से श्रेष्ठतर है। सगरेपारके निकट सगर- मन्दिरका कारकार्य और शिल्पनेपुण्य प्रथ साके तीर्थ है। वह दिलीपतीर्थसे भी श्रेष्ठतर है । समसागर- योग्य है। वहां नेपाखरामप्रदत्त एक बड़ीणा सर तोय, महोदधितीर्थ, कपिलेश्वरके चौरतीर्थ, केदारे- कती है। दुर्गाबाड़ीको माचौरसीमाके मध्य पवित्र भरके निकट इंसतीर्थ, त्रिभुवनकेशवतीर्थ, गोव्याने भार दुर्गाकुण्ड है। दुर्गाकुडके पूर्व थोड़ी दूर करवतलाव तोय, मान्धाढतीर्थ, मुचुकुन्दतीर्थ, पृथिवोग वर के निकट है। उक्त समायय भी रानी भवानीकी कोतिरे। पृथुतीयं, परशरामतीर्थ, वनभद्रतीर्थ, उसके निकट इसी मते में प्रसिद्द लोसाक कुणहै। मत्मा दिवोदामतीय, भागीरथीतीर्थ भागोरथो, तटपर निष्यापे- पुराण (१८४ । ३५), कूर्मपुराणा (३४।१७ ) और शवलिङ्गके निकट हरणायतीर्थ, उसके प्राग दमाश द. काशीगारक्षमें उक्त पवित्र तीर्थका माहामा कीर्तित "तम्याईस मनोषीद सामोत् काशिदने । हुवा है। कागोखण्ड में कहा- पतो बोला इन्चाख्या का माता विवस्वतः" (शगोक्ष ) नहीं पड़ता।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६४८
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