पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६६१

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1 झलक उठा था। काश्मीर राज इमार पागमनको प्रतीक्षा करते रहे और हमारे | कभी लोग विवश नहीं होते । बड़ी गर्मी पड़नेसे पहुंचनेसे पहिले देख न पड़ें।" सुचतुर कर्मचारियों ने घीघ्र स्वल्प वृष्टि हो जाती है। फिर पर्वतादि शीतसता उनका उद्देश्य समझ चारो पाखं के पर्वतों से बरफ मंगा धारण करते हैं। प्राचर्य नियम ! यहां श्रावणमें मूषस बादशाहकी क्रीडाका कानन ढांक रखा था । सुतरां धार वृष्टि नहीं होती। गीतकालमें बरफ गिरनेक अन्यत्र वसम्सका कार्य प्रारम्भ होते भी बादशाके समय झड़ नगती है। उसी समय थिलावृष्टि भी काननमें उसका प्रभाव न पड़ा। अन्तको नहांगीरके होती है । संवत्सर में १८। २० इच्चसे अधिक पानी पहुंचने पर बरफ हटानेसे क्रीड़ाकाननमें वसन्त नहीं वरसता । पाखिनमें फन्न कम पकता है। कार्तिक- में शीत भारम्भ होता है । वृक्ष सकल पत्रहीन हो काश्मीरमें नाना वर्णके मनोरम सुगन्ध पुष्य यथेष्ट नाते हैं। उसी समय श्रीनगरसे ६ कोस दूर पादपुर हैं । सर्व प्रथम इरिट्राम शुक्लवर्णका वेदसुष्क फूल नेत्रमें जाफरान (केसर) उत्पन्न होती है। वही खिन्नता है। निस ओर देखिये. उसी पोर पुष्पका काश्मीरके प्रति वत्सरको शेष शोभा है। किसी फारसी पास्तरण लगा हुवा मालूम पड़ेगा। काश्मीरमें फून कवितामें उक्त विषय भन्ली भांति वर्णित हुवा है। यथा के गुलदस्तेके लिये विविध प्रकार पुष्प भाहरणका जाफरान खिलकर सबसे कहती है कि तुम काश्मीर- कष्ट नहीं उठाते । सम्मुख जहां चाहते वहींसे दो एक का पथ छोड़ हिन्दुस्थानका पथ पकड़ो, यहाँको गोमा हाथ जमीनके बीच प्राय: ७ । ८ प्रकारके फूल पा जाते पूरी हो गयो। शीतकालको प्राते देख काश्मौरी पाहा- है। बैसाखमासके मध्यकाल बादाम फूलनेसे फिर रोय.संग्रह करते हैं। उस समय वा समुदाय शाक एक नयो शोमा उमड पड़ती है। वह काश्मीरयों के (कहतक) सुखाकर रख छोड़ते हैं। किसीके बरामदे बड़े भानन्दका समय है । धनी, निधन, युवा, बड, सस किसीके जंगले और किसीको नांवमें सूत्र अथित लोग हजार दास्तानका पिंजड़ा हाथमें उठा हरि. मिचौकी बड़ी बड़ी माला सूखा करती है। उन्हें देख पर्वत नामक स्थानको जाते और बादाम पेड़को शाखा कर समझते कि दुस्सा ऋतुको पात विचार काश्मी- में पिंजड़ेको लटका उष्णीष (तही) खोल देते हैं। री भी उपयुक्त आयोजन लगा रखते हैं। २०००० हजारदास्तान् वसन्तवायु लगनेसे नाचते नाचते सुस. फीट ऊंचे काश्मीरमें चिरतुषार विराजित है। कार्तिक लित खरमें गाता रहता है। काश्मीरी भी भल्लिसूचक मास पाते ही नीचे पार्वत्य स्थानमें बरफ-गिरने लगती विभुगुण गान कर इतस्ततः घूमते हैं । ज्येष्ठ मासमें है। किन्तु वह कार्तिक, जमतो नहीं, गन्च जाती है। चमेती फूलती है। उसका वर्ण पाकाशकी भांति होता पौष माससे नियमानुसार बरफका जमना होता. है। सुतरां काश्मीरा उसे "हि पासमान्" कहते हैं है। बरफसे चतुर्दिक रौप्यमणित हो जाती है। उक्त उक्त पुष्प वसन्तकी विदाईका फस है। उसके खिने सुख देखने में भी बहुत रमणीय लगता है। किन्तु उस से ही वसन्तको शोभा समाप्त हो जाती है । वैशाख समय काश्मीरमें रहना बहु कष्टसाध्य हो जाता है। बीतने पर चमेना खिन्नने से पहले पोछे कासानुसार काश्मीरपति महाराज रणवीरसिंहके मुविन मन्त्री क्रमशः फूल झरने और नवपक्षव निकलने लगते हैं। (१८८५ ई.) दिवान् कृपारामने खप्रणीत प्राषाढ़ मास फल पाता है। शस्य परिपूर्ण हो जाता काश्मीर-इतिहासमें उक्त तुषारपातके सम्बन्धपर लिखा काश्मीरमें ग्रीष्मका लेश नहीं। जब ग्रीसके प्रभाव है-'पौरपर्वतपर जो क्षुद्र क्षुद्र खेतवर्ण कणि का पड़ी से हिन्दुस्थानमें जो घबराने लगता, तब वहां गात्र पर हैं, वह बरफ नहीं, पाकापने कामोरके मुखमें एक परिधय वस्त्र रखना और रातको रजाई प्रोदना अमृतमान दान किया है।' वास्तविक वहां तुषारपाससे जीवन संशय होता है। श्रावणके प्रथम रौद्र कुछ बढ़ता है। किन्तु उसमें इसमें विधाताकी असीम करुणासे जिस प्रकार जीव पड़ता है।