पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६८५

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६८ काश्मीर » नामक स्थानपर युक्षार्थ उपस्थित हुवे । दूसरे दिन थे। उन्होंने डामरों और खों को वशीभूत किया,

प्रात:कान युद्धारम्भ होना ठहर गया। उसी बीच दरद किन्तु खुशयुद्दमें स्वयं प्राण दे दिया। कुछ दिन पीछे

राजने क्रीड़ापिण्डारक नामक नागरके पालय में स्त्रीके कहने अनन्तदेवने स्वयं सिंहासन छोड़ स्वपुत्र उत्पात मचाया था। उसीसे नागों ने समझा कि युह कलस वा द्वितीय रणादित्यको राजा बनाया । मन्त्री पारम्भ हो गया। फिर नाग भी जा पहुंचे थे। शेषको हलधरने उक्त प्रस्ताव, वाधा डाली थी, किन्तु राजाने वास्तविक काश्मोरके सैन्यसे युद्ध होने लगा। युइमें | उनको न सुनी। शेषमें उद्दत युवा रणादित्य पिताको मलेच्छराज पौर दरदराज मारे गये । रुट्रपानने मुकुट और उसकी स्त्रियां रानी सूर्यमतीको सर्वथा ही मण्डित दरदराजका मस्तक' अनन्तदेवको उपहार अगाध करने लगी। रणादित्य अधीन राजावोंसे दिया था । उदयनवत्स नामक दरदराजके भ्राताने फिर जैसा सम्मान पात, पिताको भी वैसाही करनका अभिचारक्रिया साहाय्यसे रुद्रपाल और उनके प्रादेश सुनाते थे। उस समय राजा और रानी उभय. भ्रातावों को विनष्ट किया । उसके पीछे रानी सूर्यमती को चैतन्य हुवा । इन्दधरने कौशलपूर्वक फिर राज्य- या सुभटाने वितस्तातीर सुभटामठ नामक शिवमन्दिर भार वृह राजाको सौंपा था। सत रणादित्य नाम- बनाया | उसा मन्दिरके निकट रानीने स्त्रीय कनिष्ठ मात्रको राना रह गये। उसी समय विग्रहरानके सहोदर प्राथाचन्द्र वा कलनके नामसे एक ग्राम भी पुव क्षितिराजने राजा अनन्तके निकट जाकर कहा स्थापन किया था । एतद्भिव उन्होंने स्वामौके भामसे था-"हमारे निनपुव भुवनराज और पौत्र नोलने अमरेखर, ज्ये माता शिजनके नामसे विजयेखर और हमें राज्यसे निकाल दिया है। विग्रहरान जिन त्रिशूल, वाणलिङ्ग प्रभृति शिव एवं मन्दिरको प्रतिष्ठा ब्राह्मणों को समादर करते थे, उन्होंने उनके नामके की। कुछदिन पीछे उनके गर्भजात शिशसन्तान राज. कुक्कर पान्त उनके गलेमें यज्ञोपवीत डाला है। अतएव राजका मृत्य हुवा। फिर राना और गनी दोनों हम उनका मुख न देखेंगे। हम आपके पिश पौवको राजभवन छोड़ सदासिव-मन्दिरके निकट रहने लगे। अपने राज्यका उत्तराधिकारी बनाते हैं। आप इस उसी समयसे चिर दिनके लिये काश्मीरका पुरातन राज्यका भार ग्रहण कीजिये।" उक्त कथा का चिति- रानप्रासाद परित्यक्षा हुवा । कारण तत्परवर्ती राना धरने चक्रधर में रह विष्णुसेवासे जीवनयापन किया । भी उत्त मन्दिरके निकट ही जाकर रहे थे। उसो राजा अनन्तने तन्वारान नामक स्वीय पिव्यपुत्रको समय डाक नामक एक दैशिक भाड़ने राजाका सितिराज गन्धमें पौत्रके पक्ष पर शासनकर्ता बनाया। बड़ा प्रियपान होनेसे यथेष्ट धनरव लाम किया। उसी समय जिन्दुराज नामक किसी व्यजिने उच्छाद यहांतक कि उससे राजकोष शून्य प्रायः हो गया । डामर और दरद लोगोंको दमन किया था। राजाने रानी सूर्यमतीने वह बातदेख राजकोषको अपने हाथमें उसे सम्पनराजाका राजा बना दिया। उसके बाद ले अपरिमित व्यय निवारण किया था। विगत देशीय हमधर मर गये। उहोंने मरते समय कहा था-"महा- केशव ब्राह्मण उस समय प्रधान मन्त्री रहे । गौरीश- राज! कम्पमापति जिन्दुराज और कोषाध्यक्ष नागके विदशालय नामक स्थानमें भूति नामक एक पुत्र जयानन्दसे सावधान रहियेगा। इठात् परराज्यपर वैश्य थे। उनके तीन पुत्र रहे-इसधर, वन और पाक्रमण करना भी अच्छा नहीं।" परामर्शक वराह,। हलधर रानी सुर्यमा अनुग्रहसे प्रधान अनुसार पनन्तने सुविधा देख जिन्दुरामको कारावा मन्त्री बन गये। उन्होंने मन्त्री हो राज्यमें अनेक शम किया। काल पाकर जयानन्द और साहीराजपुत्र अनुष्ठान किये। इसधरने वितस्ता और सिन्धुके सनम विलपित्यराज तथा पाज नाममा राजा रग्बादित्य स्थल पर एक स्त्रयां-मन्दिर भी निर्माण कराया था । को केवल कुपथमें लगाने लगे। उसी समय उनके देवी- उनके कनिष्ठ भ्राता वराहके पुत्र विम पतिशय वीर पम गुरु अमरकण्ठके मरजानेसे उनके सभाग्य पुत्र