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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६९३

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६६ काश्मीर लोहर राज्य देकर वहीं पहुंचाया था। सुम्मन्न धनरब जयापीड कन्नौजसे जो सिंहासन लाये थे, उच्चसके इय इस्ती, अस्त्र-शस्त्र और उत्कर्ष के पुत्र प्रतापको राजधानी अधिकार करते समय वह कुछ कुछ जल साथ ले चल दिये । कनक उसी स्थलमें बन्दी थे । गया । उनने फिर उसे नूतन निर्माण कराया था । पथिमध्य वह भाग खड़े हुवे और काशी जाकर गङ्गा उच्चन्तने कायस्थोंका अत्याचार देख सर्वथा जनमें दूब 'मरे। उधर जनकचन्द्र राज्य में ऐसा कार्य समस्त कायस्खोंको राजकाजसे पन्नग कर दिया। करने लगे, कि वही सबके ऊपर समझ पड़े उच्चल मोष्टधरादि दुष्ट कायस्थों को यथारीति शास्ति मिन्दी 'नाममात्रको राजा रह गये। थी। कम्पनापतिके दशक महाप्रतापशाली होनेसे उरशाराज अभयको कन्या विभवमती हर्ष देवक उच्चलके क्रोधभाजन बने और विपन्चाटाको भाग नाते पुत्र भोजदेवकी पत्नी थौं । भोजदेव को अनेक सन्तान भी खुशों द्वारा विनष्ट हुवे । हारपति रक्कक उसी होकर मर गये, केवल २ वर्ष के कोई पुव जीवित रहे दोषमे विजयक्षेत्रको निकाले गये और उच्चनको दी उनका नाम मिधाचार था। जनकचन्द्र के अनुरोध और हुयो सामान्य संख्यक मुद्रासे जीविका चलाने लगे। कुछ कुछ दयाके परवश अञ्चलन उस शिशुको विनाश माणिक्य, तिलक, जनक प्रकृति वीर भी उसी प्रकार न किया। उस समय समझ पड़ा जनक चन्द्र जिस देशसे निकाले गये थे। फिर सडके पुत्र रड, छुड और भावसे कार्य करते, उसमे वह स्वयं राजा होनेकी व्याड मन्त्री हुवे । यम, ऐल, अभय और वाण पाशा रखते या उक्त शिशुको राजा बनाना चाहते थे। प्रभृति अपरिचित व्यक्तियोंने हारपति आदि उच्चपद उच्चलने शेषमें जनकचन्द्रको भी हारपति पदपर पाये थे । वृद्द कन्दप भी कार्यग्रहणायं पात हुवे । अभिषिता कर राज्यसे दूर भेज दिया । भीमदेव उससे किन्तु उच्चनको मति बिगड़ी देख वह न गये। चिढ़े थे । शेषको जनकचन्द्रसे भीमदेवका युद्ध होने उधर सुस्मन्नने नोहरमें रह राज्य लोभसे उच्चलके लगा। संग्राममें कालपाश नामक भीमदेवके किसी विरुद्ध अस्त्रधारण किया था । वराहवात नामक सेनानीके हाथ जनकचन्द्र पाहत और भीमदेवक स्थानमें दोनों वातावों में प्रथम नड़ाई हुई । सुस्मल हाथ निहत हुवे । गमग और सांड नामक जनकके दो पराजित हो लोहरको भगे थे। उच्चलको किन्तु संवाद माता भी आहत हो लोहरको भगे थे । संग्रामस्थलमें मिला कि मुस्सल दूसरे दिन लौटनेवाचे रहे । उसोसे सच्चन ससैन्य उपस्थित रहे। उनने कोई पच लिया गग्गचन्द्र के साथ एक दल सैन्य भेजा गया। पथिमध्य न था । कारण जनकको क्षमताको खर्च करना उनको सुस्मन्नसे लड़ाई होने लगी। लड़ाई में सुस्मलके अच्छे भी ईप्सित रहा। शेषको उच्चल क्रमशः राज्यमें शान्ति अच्छे योता निहतं हुवे । शेषको उच्च तने भी क्रमराज्य स्थापन कर मडरराज्य चले गये। वहां उनने विद्रोही पर्यन्त धाताका अनुसरण किया था। सेत्यपुरको जड़ाई। डामरोके प्रधान कालिय प्रभृति और इशाराजको मारा में हार सुमन्त लोहरके पार्वत्य पथसे स्वराज्यको था। फिर देशको शासन कर उच्चलने प्रस्थान किया। लौट गये। उच्चलने सेयपुरके डामरराज लोट्रकको गग्ग उसी समयसे इनके प्रियपात्र बन गये। मार डाला । कारण उनने स्वराज्यसे सुस्मन्तकी भागने उचलने दग्धावशिष्ट नन्दीक्षेत्र नगरके चक्रधर, में सहायता की थी। उञ्चन भ्राने हमें पड़ लोहर योगेश और स्वयम्भु मन्दिरको पुनर्निर्माण कराया। पर्यन्त मुस्सलके पीछे न गये। हर्षदेव कटक श्रीपरिहासकेशवमूर्ति विनष्ट हुयो उधर भीमदेव राजान कलशके एक सन्तान भोजको थी। उच्चनने उसे फिर प्रतिष्ठा किया । त्रिभुवनखामो सिंहासन पर बैठा दरदराज जगदलको साहाय्यार्थ के मन्दिर और तत्संलग्न शुकावली प्रासादको भी बुलाया था। दर्शनपालके भ्राता सक्षपालभी इर्ष देव- हर्षदेवने इतथी कर डाला था। उच्चलने उसे फिर पुत्र सङ्कणसे मिन्त गये। दरदराज राइमें उनसे पूर्वको भांति धनशानी और सौन्दर्यपूर्ण कर दिया। बड़नेके लिये उनकी ओर बढ़े थे। किन्तु उच्चनने उन्हें