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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६९६

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काश्मौर उसके बाद सन्धि यो। किसी दिन राजा सामागा काण्ड देख “राजद्रोह" कह कर चिला उठे । किन्तु में उनको मात देख विगड़े थे । उनने उनको तत्क्षण उनके सीक्षण प्राघातसे महाराज चिरदिनके लिये निरस्त्र कर बन्दो बनाया। कल्याण, विदेश प्रति निद्रित हुवे। उनका छिन्नमम्जक भिवाचारके पास गर्ग के और उनकी पत्नी मलादेवी सब लोग भेजा गया। राजपूत सिंहदेवको उक्त सवाद मिमा पुत्र पकड़े गये। ३ मास पीके (८४ लौकिकाब्दको था। सिंहदेव राजा बने । उन्होंने मन्विों से परामर्श गर्गादि गंजाके पादेशसे निहत हुवे । से राजधानी सुरक्षित रखनेको गे और पहरी वैठाये थे। दूसरे दिन मध्याहू काल भिक्षादाग्ने ससैन्य नगर फिर मजकोट, पृथ्वोहर, विजय प्रभृति सबने मिन में प्रवेश किया । उसी समय गर्गपुत्र पश्चचन्द्र विस्तर कर भिशचारका पक्ष अबलम्बन पूर्वक मुस्सलके संन्य ले राजासे जा मिले। धोरतर युद्ध हुवा था । साथ हिरण्यपुर और महासरित स्थान पर लड़ कर राजधानी में प्रवेश किया। राज्य मिक्षाचारकै अधिकार में भिक्षाचारने गड़बड़ देख राजधानीती परित्याग गया था। राजा सुस्सलने अवशेष (२६ लौकिकाम्द) किया। उसके बाद विजयदेव प्रभृति कई स्थानों पर को अग्रहायण मास कम्पनराज्यमें पाश्चय लिया । घोरतर लड़ाई हुई। किन्तु भिक्षाचारको मनस्ता- तिनकसिंहने समस्त अपमान भूल उन्हें यत्नसे रखा मना सि.न हुई। या..तिलक सैन्य संग्रह कर फिर युद्धका उद्योग भगाने सुस्सलके पुत्र जयसिंहने राजा हो राज्योन्नति की लगे। उधर नगराध्यक्षको कन्याके साथ भिक्षाचारका भोर दृष्टिपात तो किया किन्तु प्रतीहार पर राज्य विवाद हो गया। उसके वाद भिवाचार राजसिंहासन का प्रधान भार डाल दिया। प्रतीहारने शान्ति स्थापना प्पर बैठे। के लिये राजविद्रोहियोंसे सन्धि की थी। जयसिह कुछ दिन बाद भिक्षुने हो सुम्सबके विरुद्ध भाग अनेक कीर्ति कर गये। उनके समय का पण्डितने विश्वको भेजा था। पर्णोत्स, विटोला और सदाशिव राजतरङ्गिणी नामक संस्कृत इतिहास प्रणयन किया। नामक स्थानमें युद्ध हुवा । विम्वत्र पराजित होने पर सुस्सलने सम्म जयसिने राजा हो २५ वर्ष राजत्वके वाद . जयन्ताम किया था। भिक्षाचार भाग गये। किन्तु अल्प दिन वाद पृथ्वोहर और शिक्षा- लौकिकाव्दको काला णको कण हादशी के दिन परलोक चार मिख विजयक्षेत्रमें जय पा राजधानी के पभिमुख गमन किया। वह नियत प्रजागणके हितसाधनमें अग्रसर हुवे। तत्पर रहे। उसके बाद जयसिइके पुत्र परमा- उसके बाद माना स्थानोंमें युद्ध हुवो। भिक्षाचार शुक काश्मीरके सिंहासन पर बैठे। उन्होंने पहले या मुस्सल कोई सम्प प जय पान सका । :सुस्सलके प्रना रक्षणादि कार्य परित्याग पूर्वक किसी न किसी अनुपस्थिति काल डामर राजधानी में नाना स्थानों पर प्रकार स्वीय धनकोष भरने की चेष्टा की थी। अवशेष -भाग लगाने लगे। वितस्ताके उभय पार जिसने काष्ठ. को उनके धूत मन्त्रियोंने बालकको आँमि उन्हें फुसला निर्मित घर रहे, प्राय: सभी जम गये । निरीह प्रजा पौर भय दिखा समस्त धन अपहरण किया. 1.वह राजधानी शेड़ भगने लगी । सुस्सत राजधानीको वर्ष ६ मास १० दिन राजत्व कर ४० कौकिक्षाब्द सौटे। उसी समय उत्पल व्याघ्र प्रभृति साजिश कर को कालपासमें पतित हुवे । परमाणुसके बाद उनके राजाके प्राथमायकी चेष्टा करने लगे। सुम्सलने उत पुत्र वति देवने राजा हो ७ वत्सर राजत्व किया · वति- का भाभास पाया, किन्तु विश्वास पाया न था। किसी देवके मरने पर वोप्यदेवको राजसिंहासन मिला था । दिन वह सानागारमें नहा रहे थे। उसी समय उत्पल हमोंने वर्ष ४ मास २७ दिन राजत्व किया । वह और व्याघ्रने जाकर देखा कि रामाका कोई रक्षक न या। उत्पक्षने हार बन्द कर दिया। मुस्सल उनका नदेव राला हुवे । उन्हो'ने १८ वर्ष- १३ दिन मूखोंके शिरोमणि रहे। फिर उनके कनिष्ठ भ्राता