पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७२२ . काहारक- --काइय व्यक्तिने दो विवाह किये । किन्तु पत्नीहयके मध्य रंगवान्ला। (पु०)२ वांकविशेष, कोई रंग। वह नित्य विवाद होता था । उसोसे उन्होंने दोमें एक नीन-हरित रहता और नीन, हलदो तथा फिटकरी पत्नीको यशपुर भेज दिया । यगपुर जानेवाली पत्नोसे मिन्नानेसे बनता है। यशबार और दूसरीसे रवानी 'हुये हैं । सन्ताल परगने | काहु, काइ देखी । के स्वामियों में नाग और कश्यप नामसे दो श्रेणी देख काइ (हिं. सर्व०) किमो पड़ती हैं। कहार ऊर्ध्वतन सात युरुषों का मम्म देख काह (फा० पु० ) सनाद, खम । काइको वङ्ग नाम विवाह करते हैं । विवाहप्रथा साधारण हिन्दुवा काइ, सन्नाट, नामिन्नमें गन्नातु, वेनगुमें कार और के समान है। कहारों की स्त्रियां विशेष अपराधोने मिहलीमें सन्नद कहते हैं । ( Lactuca Scariola) से पञ्चायतके अनुमतिक्रमसे पतिको छोड फिर बाह पश्चिम हिमान्नयमें मगैसे कुनाबर तक सात विवाह कर सकती हैं। उनकी पञ्चायत अधिक क्षमता हजारमे दश हजार फीट ऊंचे उत्पन्न होता है । वह रखती है। उसे कोई अमान्य समझ नहीं सकता । पथिम तिव्बनमें भी मिलता है। उसमें कुछ कुछ कांटे धर्म सम्बन्ध में कहार शैव, शाता और गाणपत्य है । रहते हैं। फिर साईवेरियासे काइ अङ्गारेजो होपों और उनमें वैष्णव बहुत अल्प होते हैं। वह अन्यान्य देव कनारोल तक चला गया है। तागे की भी उपासना करते हैं। कहारों में नोकरी यह गोभीको भांतिका पौदा है। पत्र दोघं और करनेवाले अन्यान्य श्रेणीको अपेक्षा सामाजिक सम्मान: कोमल होते हैं। शीतकान्तको भारतके उद्यानों में में श्रेष्ठ हैं। उसे शाककी भांति बोते हैं। युक्तप्रदेशके कहार द्विजातिके घर पानी भरते काइके वौजसे स्वच्छ, मधुर और स्फटिकाम तैन विवाहादि अवसरों में अन्यान्य कार्य भी यथायोगा निकन्नता है । गत १८६४ ई. को पजाबप्रदर्शिनोके करते हैं। हष्टि होने पर वह तानावों में वेल डाल देते समय लाहोरमें उसका नमूना दिखाया गया था। हैं। शरत्ऋतु, सिंघाडा नगनेसे उसे कच्चा-पक्का वेच काह शीतल और लान्तिनाशक है। भारतका अपनी जोविका चलाते हैं। डोली ले जानका कार्य काह ईशानके काहसे अच्छा होता है । किन्तु भारतके भी उन्होंके जिम्मे है। औषधालयों में उमका व्यवहार कम है । काई युरो काहारक ( स० पु०) कुत्सितं शिविकाटिवहनरूपनोच पीयों के काम आता है। वृष्टीय संवत्से प्रायः ४.० वृत्तिमवलम्बा आहरति जीवनयात्रा निर्वाच्यति, कु वर्ष पूर्व वह ईरान्के दादशाहों के भोजनमें त्र्यवहृत पाह-खुल, कोः कादेशः । शिविकादि वाहक जाति होता था। भारतीय का नहीं खाते। विशेष, कहार । श्रतोबरसे फरवरी मासतक का उत्पन्न होता "तथा गारुडिका वीरा: तुरकर्मोपनीविकाः । है। गोभोको भांति उसमें भी एक डण्डन निकलता, व्याधा: काहारकाः पुष्टाः कच्चस'बाहयन्ति ये" जो ऊपरको रहता है । उसी में फुल ओर वोज पाते (मिनिमाये आश्व०१००) हैं। काइको अफीम अच्छी नहीं होती। काहि (हिं. मर्व) किसको, किसे। काहजी (सं० पु.) ज्योतिषप्रन्य-रचयिता महादेवके काहिल (प्र० वि०) १ अलस, सुस्त ।२ रुग्न, बीमार । पिता ३ दुवैन, कमजोर । ४ कश, दुवन्ना । काहन-भैलम प्रदेशको एक कृषक-जाति । इसको काहिली ( अ० स्त्री० ) पालस्य, सुस्ती। संख्या दश हजार के करीव है। काही (२० स्त्रो०) केन वायुना पाहन्यने का-इन काइय (सं० पु०) कइयग्य अपत्यम्, कइय-प्रय डडी । कुटन वृक्ष; कुटकीका पेड़। शिवादिभ्योऽए । पा ४।१।११२ । कइयके पुत्र । काही ( हिं० वि०) १ नीन्त हरित, कासा-हरा घासके | काहे (हिं० क्रि.) क्यों, क्या बात है।