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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७३१

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०३४ कियाह -किरकिरा अन्तर पर दो सूक्ष्म मोड़ों के मध्यको भूमि। कियारोमें गहरके मध्य प्रस्तरका एक भग्नप्राय खोल और वुह- वीन दोते या पौदे लगाते हैं। २ क्षेत्रविभागविशेष. | मूर्ति मिनी । वुधमूर्तिका मस्तक टूट गया था। खेतका एक हिस्सा। ३ क्षेत्रका वह भाग जो जन्न कनिंगहामने खोलने पर उस खोनके भीतर एक सिच्चनके निमित्त बरहों या नालियों के मध्य फावड़ेमे सुवर्णका डिव्वा और उसके भीतर एक चांदी का डिब्बा मेंड़ लगाकर बनाते हैं। ४ वृहत् कटाहविशेष, कोई पाया | वह डिव्वेके मध्य एक हरिपूर्ण स्फटिवा- वड़ा कड़ाह । उसमें समुद्रका चारजन्न लवण नीचे माला, एकखण्ड अस्थि और एक मनुष्यदन्त था। बैठाने को भरा जाता है। ५ चारपाई, खाट । उक्त स्त पके गात्रमें ट्रव्य रखनेके कई भाले बने हैं। उन्न अर्थ में कियागे शब्द स्वर्णकार व्यवहार करते हैं। पावसे प्रायः २००, ३०० छाप नगेन्नाखको पत्र मिले ६ चौका, भोजनका विभिन्न स्थान । हैं । उक्त छापें चार प्रकारको है। बड़ी छा३ इन्च कियाह (स' पु०) कियान रतवर्णी इयः, पृषोदरा लंबी है। उनमेसे कई में वुमृति, स्त पको पाकृति दित्वात् सावः । १ रतवर्णाश्व, सुर्ख या नान घोड़ा। और नानाविध विषय मुद्रित था। किन्तुः प्राय: २ शृगाल, गीदड़। ३ भाग छा ग्रीष्मकालमें गन्तकर प्रसट हो गयी हैं। कियूल-१ जनपदविशेष, एक बसती । लक्ष्मीमराय कई छापोंसे स्थिर हुवा है कि उक्त स्तुप ईशवीय रेलवेके ठीक दक्षिण या केवल नदीतीर कियून्त एक मा१०स शताब्दके मध्यकान बना था । वहां क्षुद्र ग्राम है। किसी समय वह समृद्ध बौदनगर था । किसी मट्टीके कलशमें पित्तननिर्मित ४ बुद्धिमूर्ति किन्हींके मतमें कियूल हो युअन-चुयाङ्गके उल्लिखित रहौं । उनका कुछ भी नहीं विगड़ा है। २ दैट इगिड- 'लो-इन-नि-लो"का अंश है। उक्त ग्रामके पथिम यन रेलवेका एक जंकशन टेशन। दिशामें 'मसारपुखुर' नामक एक बावड़ी है और किर ( स० पु०) किरति विक्षिपति मलोपचितस्वल उस बावडीको उत्तरदिशामें फिर एक बावडी है। इस इति शेषः, क-क । १ शूकर, सूबर । २ प्रान्तभाग, द्वितीय पुष्करिणीके तौर पर किमी बौद्ध-मन्दिरका सहन । (त्रि०) ३ क्षेपणकारी, फेंकनेवाला भित्तिभाग और कुछ बौद्ध युवावोंकी प्रतिकृति पड़ी हैं। किरंटा (हिं० पु०) निम्नश्रेणीका ईसाई, केरानी, छोटा ग्रामके मध्य एक स्थान पर पद्मपाणि बोधिसत्वको किरष्टान । किरंटा अंगरेजी के क्रिषियन (Christian) पाषाणमूर्ति है। फिर स्थानीय जमीन्दारोंके उद्यान में शब्दका अपभ्रंश है। भी उन्हींको एक तुद्रकाय प्रतिमा विद्यमान है । कियू- | किरक ( स० पु० ) किरति लिखति, क-खुन् । लसे ईषत् दक्षिण 'कोबय' नामक ग्राम है। उक्त १ लेखक, कातिव, मिनरलनेवाला । किर क्षुद्राथै कन् । ग्रामकी वसति माधुनिक होते भी स्थान बहुत प्राचीन २ शूकरथावक, सूवरका वच्चा या छौना। है। वहां प्राचीन कीर्तिका भग्नावशेष यथेष्ट देख किरका (हिं० पु०) क्षुद्र खण्ड, कंकड़, किरकिरी, पड़ता है। ग्रामके मध्य बालककोड़ा षष्ठो वा भवा. छोटा टुकड़ा। नीको मूर्ति और मन्दिर है । कोवयमें पञ्चध्यानी | किरकिटौ (हिं० स्त्री० ) धूलि वा एका कम्प, गर्द या बुद्धकी एक मूर्ति मिली है। कियून ग्रामके अपर पार तिनके का छोटा टुकड़ा । किरकिटी चक्षुमें पड़नेसे कियून नदोके पूर्वतौर ३० फौटका एक भग्न इष्टक पीड़ा उत्पन्न करती है। स्तूप है । उसे 'विर्दावन स्तूप' कहते हैं। गंवार लोग | किरकिन (हि. पु०) धर्मविशेष, किमी किम्मका स्त पको सामान्यतः 'गड़' कहते हैं। उक्त स्तू पके चमड़ा। किरकिन घोड़े या गधेके दानादार चमड़ेकी पश्चिम १५० से १६० फीट पर्यन्त विस्त किसी मठका कहते हैं। भग्नावशेष देख पड़ता है । प्रत्नतत्ववित् कनिंगहाम | किरकिरा (हिं० वि० ) १ कंकरीला, जिसमें शेटे कोरे साहबको उन्म स्त पके शीर्ष देशपर ६ फीट गभीर | कंकड़ रहे। २ वुरा, खराध ।