1 । नाखून। कस्पाव -करबाल करपान (लो) कर पाववत् यत्र । १ जन- ( करवच (हिं. स्त्री०), गोन, खुरजी। यह एक क्रीड़ा, पानीका खेल। २ हस्तरूप पात्र, बरतनका प्रकारको दोहरी येलो रहती पोर बंचपर न्यदती है। काम देनेवाला हाथ। योगी अपने करका पात्र और करवड़ावी. (सं• स्त्रो०) प्रत्यक्षपर्णी, बनीपूरन । .उदरकी झोली रखते हैं। करबला (अ० स्त्री०) १ परब देशको एक समतच कम्पात्रिका (सं० स्त्री.) करपाव देखो। भूमि। यह अत्यन्त निर्जन स्थान है। सुसलमानों के करपान (हिं. पु.) रोगविशेष, एक बीमारी। यह हुसेनका यहीं वध हुवा था। २ नाजिये गाड़नेको एकप्रकारका चर्मरोग है। इससे बालकोंक शरीरपर जगह। करवलेका मैन्ता महरम १.वें दिन होता रक्तवर्ण दाने उभरते हैं। है। ३ निर्जन खान, पानी न मिलने की जगह। करपाल (स० पु.) कर पालयति, कर-पास-प्रणे। करमस (हिं. पु०) कथाभेद, किसी किसका चाबुक। कर्मण्यम्। पा शरा। खड्ग, तसवार। इसमें एक हो। यह दरयायो घोड़े के चर्ममे अफरीकाके सिनार ओर धार रहती है। । निगरमें बनता है। मित्र देशमें इसका व्यवहार वरपासिका (सं. स्त्री०) करं पालयति, कर-पाल अधिक है। खुल्टाए। बुल् वची। पास। १ बुद्र इस्त. करवाल (सं० पु.) करस्य बातः सुत इव । १ नख, यष्टि, हाथकी छोटी छड़ी। २ छुरा। ३ मुदगर । ।। कर प्रायित्य वसते हिनस्ति, बस-पण। करपाली (सं० स्त्री.) करं पालयति, कर पास २ खड्ग, तसवार । इसका संस्कृत पर्याय पसि, खड्ग, णिनि-डीए । नन्दिरपिचादिभ्यो स्यु निन्धचः । पा शं॥१३४। तीक्ष्णवम, दुरासद, वियसन, श्रीगर्भ, विजय, धर्मपान .१.सुद्रहस्तयष्टि, नाथकी छोटी छड़ो। २ छुरा। वा धर्ममाल, निस्त्रिंग, चन्द्रहास, कौशेयक, मडवाय, ३ मुदगर। करपाच, तरवार और रिटोरे। गठनके पाकारानु- करपीड़न (सं• को०) करस्य वधूकरस्य पोड़नं सार इसके दूसरे भी कयो नाम मिलते हैं। वरेण यत्र, बनो। विवाह, पारिग्रहय। अति पूर्वकाल अर्थात् वैदिक समयसे भारतवर्षीय करपुट (सं० पु.) करयोः पुटंः, तत्। वहाचलि, वीर करवान व्यवहार करते पाये है। - वैशम्पायनोज अंजुडी। धर्वेद, वारचिन्तामवि, सौहार्यव, - शिवस्पतरू, करपृष्ठ (सं.ली.) इस्तका पयाद भाग, यक्षा वृहत्संहिता प्रति प्राचीन संस्हात अवमें करवास वा पिछला हिस्सा। खड़गका विवरण यथेष्ट मिलता है। करप्रचय (सं० वि०) १ इस्तहारा ग्राम किया वीरचिन्तामपिके मतसे खड़ग' निर्माण करनेको मानेवासा, जो हाथसे पकड़ा जाता हो। २ करहारा दो प्रकारका खौह उपयुद्ध है-निरई और सात्र । इकट्ठा किया जानेवाला, जो टिकससे लिया जाता। फिर माधरपति अंत्वमें प्रधान साचोड दा करपद (सं.वि.) करं प्रददाति, कर-प्रा-दा-प्रा। प्रकारका कहा है। यथा- रोहियो; २ मयूरवक, आतयोपसगे। पाशा १ करदाता, महसूल या ३ मयूरवच, ४ सुवर्णवन, ५ मोषजवष्य, खलंक, टिकस देनेवाला। इसाप्रदान करनेवाला, जो हाय ७ ग्रन्विवष्य, शैवालमानान, नीचपिड और सगाता हो। १ रोहिणी छोटे काड़ जैसी, पवन्त कठिन पौर करप्राप्त (वि.) इक्षगस, पाया हुवा, जो हाथमें अथ नीलवर्ण शौक है। इससे पत पानेपर बड़ी पा गया हो। करफु (बौदयद) कोयो वियेष. जब संस्था, बात बड़ी अदद।. देवाता, सी-मयूरक बाता है। .१.तित्तिराता वेदना बढ़ती है। ।' २ जो सौर मयूरक काण्डको भाति वर्ष विशिष्ट करफूल (हि.पु.) दौनी।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/८१
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