पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/८६

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१-करमा वाई । करमचन्द 'करमचन्द (हिं. पु०) कर्म, काम, भाग्य, किस्मत । | करमदेका ( स. स्त्री०) करमर्दक देखो। करमट्ट (पु.) करं हस्तिशुण्डं अति पति- करमर्दा-एक नदी या दरया। यह नदी नर्मदाते कामयति, कर-अ-ख:मुम् । १गुवाकच, सुपा- मिल गयी है। इसका सङ्गमस्थान पुण्यतीर्थ माना रोका पेड़। जाता है। उक्त स्थानपर करमदेश्वर शिवलिङ्ग प्रति- करमहा (हिं.वि.) कपण, कब्ज से । ठित है। स्कन्दपुरागीय रेवाखण्डके मतानुसार कर करमठ (हि.) कर्मठ देखो। मर्दा सङ्गममें नहा करमर्दैखरका दर्शन करनेसे पुन- करमण्डल-भारतवर्षके दक्षिण-पूर्वका उपकूल। इस जन्म नहीं होता। नामको उत्पत्तिपर कुछ गड़बड़ चलता है। किसी रमर्दिका (स. स्त्रो०) करौंदी। यह पर्वतज द्राक्षाके सदृश होती है। (भावप्रकाय) 'किसीके कथनानुसार पुलिकटके निकटस्थ प्राचीन 'करमण' ग्रामसे यह नाम निकला है। पूर्वको करमर्दी (सं० पु. स्त्री०) करं मृगाति, मृदःणिनि । करमण्डलमें पोतंगीनोंका जहाज़ लगता और पढ़- १ करमवक्ष, करौंदा। २ करजक्ष, करील । तियोंका वास रहता था। फिर कोई कहता करमयोणि-बारभङ्गके अन्तर्गत ग्रामविशेष, दरभङ्गाशा तामिन्न 'चोरमण्डन्त' को अंगरेज़ोंने बिगाड़ 'कर एक गांव। हारभङ्गराजा मन्त्री करमशोणिने इसे मण्डच' नाम बनाया है। शेषोता मत युक्तिसङ्गत बसाया था। (भवि० प्रखण्ड ४४१८०६१) है।. तामिल 'चौरमण्डल'को संक्रतमें चोलमण्डल करमसेंक (हिं० पु०) १ पञ्चायती हुक्क.।। २ अल्प कहते हैं। प्राचीन चोल राजाकि समयसे यह नाम घृतमे से का हुवा पराठा। यह बड़ी मुश्किलसे निकला है। चोल देखो। प्राचीन पाचात्य भौगोलिक खनिमें आता है। टलेमिने इस स्थानका नाम सोरते (Soretai) करमा (हि.) केमा देखो। लिखा है। (Ptolemy, Geog. Bk. VII. ch. I.) करमा वाई-एक असाधारण भक्तिमती ब्राह्मण कन्या। करमध्य (स'. क्लो०) कर्ष, २ तोलेका वजन। दाक्षिणात्य प्रदेशके खाजन्न ग्राममें इनका जन्म हुवा करमरिया (हिं. स्त्री०) शान्ति, अमन, चैन । समुद्र था। पिताका नाम परशराम पण्डित रहा। में वायु मन्द पड़नेसे तरङ्गका बैग घटना करमरिया स्थानीय राजाके पुरोहित थे। राजा और राजपुरो अडाता है। यह शब्द पोतंगीज भाषासे लिया गया है। हित दोनों परमवैष्णव रहे। उस समय धर्मशास्त्र का करमरी (सं० पु०) किरति विक्षिपति दण्डादीन् । मूल उद्देश्य समझनेको स्त्रियां भी विद्या पढ़ती थी। प्रत्र, क अधिकरणे पण, कर कारागारः तत्र सर: करमा बायो शैशवकाल हो विद्यावती बन गयौं। नृत्यु वत् क्लेशे अस्य, बाहुनकात् इनि अथवा करे विद्याथिक्षाके साथ-साथ इन्हें वैष्णवधर्मपर भी अधिक नियते, कर-म-इनि। बन्दी, कोदो। तर भक्ति बढ़ी। पण्डित परशरामने यथाकाल करमा करमद (स.पु०) कर मृदाति, कर मृद-अण । बाईको सत्पाबके हाथ सौंपा था। सम्पूर्ण अनिच्चा करमर्दक वृक्ष, करौंदेका पेड़। भावप्रकाशने इसके रहते भी पिताके अनुरोधसे इन्होंने विवाह कर लिया। अपक्क फलको अन्न, गुरु, प्यानाशक, उष्ण एवं किन्तु खामौको अवैणव एवं विषयो देख यह सहवास रुचिकर और पित्त, रता तथा कफ-वृद्धिकारक कहा वा ग्राहस्थाली करनेसे पसम्मत हुयौं। दुनके सकल है। पक्क करमदै मधुर, रुचिजनक एवं लघु और कार्यों से साधारणको विस्मय आ जाता। फिर करमा पित्त तथा वायुनाशक है बरख देखो। वाई सर्वदा निर्जन स्थानमें बैठ इष्टदेवकै . पादपद्मको करमदंक (सं० पु.) करं मृद्राति, .कर मृद-खुल् चिन्ता करतो, पागसकी भांति सभी ईसती, कभी री वा करमदं एव, स्वार्थे कन्। १ करमद, करौंदा उठती और कभी 'धा नाथ!' पुकारकर चिलाने लगती २ सताविशेष, एक वेत। थी। कुछ काल पोछे पुनर्वार इन्हें स्वामीके ग्रह पहुं-