लाहोर ११८ उरानी नहीं जमती । वीके सिवा अन्यान्य ऋतुओं में वहाँ। और खाल काट कर जमीन उपजाऊ बनाई गई है। उनमें- जो घास और पौधे उगते हैं, उसे ऊंट आदि जानवर नाना शाग्ना विस्तृत बडादोभाव बाल विशेष उल्लेख टाते हैं। वर्षाके जलसे वह घास पुनः स नीव हो कर योग्य है । यह शत से ले कर लाहोर नगर और मित्रान- लने लगती है जो पोछे गौओंको सिलाई जाती है। वीन मोरके सेनानिवास के बीच हो पर बह गई है और बीचमें थड़े बडे गांव दिखाई तो पड़ते हैं, पर इम उच्च- निजवेगके निकट इरावतीम मिल गई है। इसकी भूमिका अधिकाश स्थान ही प्राचीन पुष्करिणी. कृप, | कसूर शाग्वा और सोबायोन शाखा फिर घूम कर शतदा । मगर और दुर्ग दिया दृटा-फूटा पडदा देग्न कर अनु-1 में मिल गई है । मुगल-सम्राट शाहजहां के प्रसिद्ध हयपति मान होता है, कि इस अधित्यका-भूमिमें एक समय एक / अलीमईन बाँने यहाँको हसनी साल कटवा निकाली थी। समूह जातिका वाम था। शत नदीसे कुछ दूर पूर्व- वह पहले गालिमारका विख्यात उद्यान और फुहारेका पति विस्तृत एक ऊंचा वाघ है। इस वांघसे नदी जल सरवराह करती थी, लेकिन आज कल बढ़ादोभाव तीर न जो निकोणाकार उधर-भूमि है, यह होतार | खालका कलेवर पुष्ट करती है। इसके अलावा कटोरा, पहलाती है। इरावती नदीके किनारे बहुत से पेड़ तथा खानवा और सोहाग नामक साल गत के गर्भसे काट और फल उगते है उसके उत्तर-पश्चिममें देवनदी- कर माझा और उक्त नदीक मध्यवती तिकोणाकर भूमि- के किनारे तक जंगल है। में जल पहुंचाया जाता है। उपरोक्त नदियों के मरवाहिका प्रदेश तथा खलप्रवा ___ यहां झोकर, गिरीय, मन्द, कर ल, शिशु, आग, शिव स्थानों के अलावा इस जिलेमें और कहीं भी प्रचुर वायन, आमलता, पीपल, वट आदिके पेड़ बहुनायतसे शल्य उत्पन्न नहीं होता। इसका एकमात्र कारण जलका होते हैं। जङ्गलमें अन्यान्य नाat जातीय वृक्ष तथा स्मार दी है। यहां कू पोद कर जल निकाला जाता चीता, नीलगाय, बनवराह और हिरन आदि पशु नगा है अथवा सालसे या और दूमरे उपायले जमीन सोंची। नदी के किनारे तरह तरह के पक्षी विनरण करने हैं। शाती है। चेया करनेसे और जिलोंके समान यहां गस्य बहुत पहलेले यह जिला आर्य सम्प्रताका केन्द्रस्थल "डा किया जा सकता है ; किन्तु फठिन परिश्रम करने था। आज भी जनशन्ध बनान्तराल प्रदेशस्थ ध्वस्त पर भी यहां सियालकोट, होसियारपुर या जालन्धरको नगर तथा कूपनहाग आदि उसका परिचय देता है। यह वर शस्य पैदा नहीं हो सकता। सब प्राचीन कीर्ति ऊची भूमिमें रहने के कारण अनुमान रायती नदी इस जिलेके बीच हो कर तथा लाहोर | होता है, कि उस समय यहांकी जलराशि अपेक्षाकृत पारफे पास हो कर बह चली है। वीच बीच में पहाड उच्च स्तरमें वहती थी नया अधिक सम्भव है, कि तत्का- घानेके कारण इसका जल टकरा कर शावारूपमें बह गया | लोन सुशिक्षित और सभ्देश वामियोंने सुझौगलसे है। फिर आगे जा कर एक धाराम हो गई है। शत। अपने अपने प्रतिष्टित नगरों में जल लाया था। फिल- पौर विपाशा नहो आज कल एक हो कर वहती है। हाल भी उस प्राचीन आर्यसभ्यताक कुछ निदर्शन यहा प्रामवासियों में एक किंवदन्ती है, कि १७५० ई०की किसी दिग्पाई पड़ते हैं। मनैसर्गिक कारणसे इस नदीकी गति परिवर्तित हुई। इस जिलेका इनिहास लाहोर नगरके इतिहासके साय लोगों का कहना है, कि विपाशा नदीकी प्रवर धारा यहां मिला हुआ है। उक्त नगरके नाम पर हो इस जिलेका तपस्पानिरत सिख-गुरुको कुटी भंसा ले गई । इस कारण नाम पड़ा है। अफगानस्थान तक विस्तृत एक रास्ते उन्होंने उसे शाप दिया । तभीसे उस प्रदेशमें विपाशाको पर अवस्थित रहनेसे यह नगर अलेकसन्दरके मारत ओक- गति रुक गई है । कसूर और चुनियान नगर तथा वहुत- मणके पहलेसे भी पाश्चात्य वैदेशिक शतके हाथ पडा सा प्राचीन प्राम इस पुरातन नदी-गर्ममें अवस्थित है। है। पञ्चनदके साथ गान्धार-राज्यका सम्बन्ध महाभार• खेती बारीको सुविधाके लिये इस जिलेके चारों तादि प्राचीन ग्रन्थमें देखा जाता है। इसलाम-धर्मका .
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