६४८ वसकर इसके अतिरिक्त ब्राह्मणादि तीन वर्ण यदि स्वधर्म- गर्भजका क्षत्ता और वाराणोगर्भज मन्तानका नाम का त्याग बारें, तो वे मी वर्णसङ्कर कहलाते हैं। मनुमें चपनाल है। शूद्र कत्र्तक प्रतिलोम कमसे उत्पन्न ये लिखा है, कि अन्योन्य स्त्रीगमन, सगोत्रमें विवाह तथा तीनो जानि अति निकृष्ट है। ब्राहाण कर्तृक उप्रकन्या उपनयननादि खधर्मका त्याग, इन सब कारणोंसे ब्राह्मः । गर्भसम्मू त सन्तान आतकी, सम्बष्ठ प्रन्यालम्भन णादि नोन वर्णो मे वर्णसङ्करत्य होता है। आमीर तया आगागर कन्यागर्भज मन्तान विग्याण- "व्यभिचारेण वर्णानामवेद्यावंदनेन च । की उपाधि पानी है। न्यकर्मणाञ्च त्यागेन जायन्ते चांसकराः ॥" चण्टाल, मृत, वैदह, बायोगन, मागध नया नत्ता (मनु १०।२४)। ये छः गतिलोमन वणसर है। चाडालादि छः प्रकार. शास्त्रानुसार देखा जाता है, कि दो प्रकारसे वर्ण- जी वर्णमदार जानियोंक पररपर अनु टोम या प्रतिलोम सडर हुआ करता है, एक स्त्रियोंके मिचारसे और नामले परस्पर जानिकी पन्या गम जो मर सन्तान दुनो ब्राह्मणादि नीन वर्णाके स्वधर्म त्यागसे। खियों के उत्पन्नता है, वह अपने माता पिता सनाभावमें यभिचारले चार वर्षों के अतिग्नि जो मर जानिया : होग, निन्दाई और मस्तियायद्भुित है । शूट करक उत्पन्न होती है, वह प्रथम वर्णसङ्कर और ग्वधर्म त्याग ' ब्राह्मणीगर्भजात गण्डालादि मन्तान जिम प्रताप द्वितीय वर्णसङ्कर है। कट नमभी जाती है. चण्टा टादि छः प्रकार के मदरों चार वर्षों से अनुलोम और प्रतिलोमक्रमसे वर्ण- . द्वारा ब्राह्मणादि चार वर्षों से उत्पन्न मन्तान उनमें सङ्करजातिके मध्य पररपर आसक्तिवशतः अनुलाम , हजार गुणा हीन और निन्दाई है। आयोगवादि छः और प्रतिलोम क्रमसे यह वर्णसटुर उत्पन्न होता है। प्रकारकी हीन जातियां परम्पर मित्रभाव, परम्पर "सकीयोयानया ये तु प्रसिलामानुलोमजाः । वर्णना पत्नी के गर्भ से जो सन्तान उत्पादन करनी है, बन्योन्य व्यतिपक्ताश्च तान् प्रवक्ष्याम्यशेग्नः ॥" । उनको संग्पा पन्त्रद है। वे लोग पिनासे भी नहीं होन (मनु० १०१२५) है । दम्युजाति कर्त्तक आयोगर खोके गर्भसे जो ब्राह्मणादि चार वर्णों से परिणीता स्त्रीसे उत्पन्न ! सन्तान उत्पन्न होती है, उनका नाम मैरिन्ध्र है। ये सन्तान ब्राह्मणादि वर्ण होती है । इसके सिवा अम. सब केशरचनादि कार्यो में कुशल होतो । यद्यपि यह वर्ण पत्नीसे उत्पन्न सन्तान पिताके समानवर्ण नहीं प्रन दास नहीं है नथापि दासकार्योपजीवी है तथा पाश होता, उनकी दूसरी जाति होती है। मन्वादि ऋपियोंने द्वार मृगादिका वध कर जीविका निर्वाह करते हैं। वैदे. कहा है, कि तीन हिजवर्णों से अनुलोमक्रमसे अनन्तर | हवा जाति कत्त क आयोगयो सोग में जो मन्नान पैदा वर्णजा पत्नाके गर्भसे उत्पन्न पुत्र माता यदि नीच होती है, उनका नाम मैत्रेय है। ये लोग स्वभावतः मधुर- जातिकी मी क्यों न हो, तो भी पिताका जातिका होता मापा होते हैं। प्रातःकालमै घटा बजा कर राजा आदि है। वह यथानम मायसिक्त, माहिग्य तथा करण इन का स्तुतिपाठ करना इनका कार्य है। निपाट कत्तक तीन नामोसे पुकारा जाता है। आयोगय पत्रीके गर्भ से उत्पन्न सन्तानको मार्गव चा ब्राह्मण कत्तुक एकान्तर वा वैश्यागसम्म त सन्तान दाश कहते हैं। ये लोग नाव बनाने में बडे नतुर होने अम्बष्ठ और व्यन्तरज शूद्रागर्भसम्भृत सन्तान निपाद हैं। आयोगवी यी गनि जनकभेदसे तैरिन्ध्र, या पारशव तथा क्षत्रिय कत्तुक शूद्रागर्भमन्मन सन्तान मैत्रेय और मागेव ये तीन जातियां जन्म ग्रहण परती उग्र कहलाती है । क्षत्रिय अत्तक ब्राह्मणीगर्भसम्भू न है। निपाद कर्त्त- वैदेहीगर्भमभून सन्तानका नाम सन्तानको सूत, वैश्य कत्तुंक क्षत्रियागर्भसम्भू नको काराबर है। चमडा काटना इनका काम है। वैदेह मागध तथा ब्राह्मणीगर्भसम्भू नदो चैदेह कहते हैं। शूद्र जाति ऋतु कारावर खोले अन्ध्र और नियाद स्त्रोसे कर्तृक वैश्यागर्भज सन्तानका नाम आयोगय, क्षत्रिया- मेट जाति, चण्डाल कत्तुक वैदेहीसे वेणुव्यवहारजीवो