पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३२७

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गाध वाजित-गालव ३२५ "गाध श्वा: शिनासिताः।" ( भारत ४।४२५) २ वह स्थान जहाँ यह पवित्र अग्नि रखी जाती है। गार्ध वाजित ( सं० पु० ) गार्ध वाजः कृतः गार्धवाज करो- गाह पत्यागार ( स० पु. ) गाई पत्यस्यागार, ६-तत् । त्यर्थ णिच कर्मणिक। कतरध्रपक्षवाण, जिस राण- गाह पत्य अग्निका घर। में ग्धका पंख दिया गया हो। गाई पत्याग्नि (म स्त्रो) छः प्रकारको अग्नियोंमें गाध वासस' सं० त्रि.) गाध : पक्षो वाम इवाम्य । गृध्र- पहली और प्रधान अग्नि । पूर्व समय यज्ञों में पात्रतपन पक्षयुक्तवाण। आदि कम एमी अग्निमें किये जाते थे । प्रत्य क ग्रहण "राणां माध्र वाम माम । (भारत १३०.) गार्भ म • त्रि० ) गर्भ गर्भ शुद्धो माधु अण । १ गभ- को शास्त्रानुमार डम अग्निको रक्षा करनी चाहिये। शुद्धिक निमित्त जिमका अनुष्ठान किया जाय । २ गर्भ- | गाह मध ( म० ए० ) गहम्याय अण गाह: मध: कर्म- मम्बन्धीय। धातु । एडमम्वन्धीय यज्ञ । पंचपक्ष आदि गृहस्थोंका गाभि-बबई प्रदे शाम्थ के टांगमका एक क्षुद्र राज्य । भू मुख्यकम । परिमाण ३०५ वर्ग मील और जनसंख्या प्रायः ४६८२ है। | गाह म्थ्य ( म० क्ली. ) एहस्य कर्म गृहस्थ-यत् १ इममें मिर्फ ५३ ग्राम लगते हैं। राज्यको आमदनी गृहस्थ हत्तव्य पञ्च यतादिकम , गम्थो के मुख्य पांच ६५०० रुपयेको है। काम (पु.) २ एहस्थाश्रम। गाभिक ( म० स्त्री० ) गभ ठक् । गर्भ मम्बन्धोय।। 'चतुणामाश्रमादिगाह म्थ्य प्रमाण मम । (रामाय॥ २॥११०।२९) गाभिण ( म' लो०) गर्भिणीनां समूहः अण । गर्भिणी- गाद्य ( ( मं० त्रि०) ग्राम्य, घराऊ । समूह, गर्भवती स्त्रीका मुड । गाल ( म० ए० ) मदनवक्ष। गात ( म० त्रि. ) गर्मुत इदम् अण । १ गमु त् धान्य | गाल ( हिं पु० ) गंड, कपोन्न । सम्बन्धोय । गाल गूल (हि. पु. ) व्यथबात, गपशप । , “प्राजापत्य गाम सचर मिश्पेन।" (तात. सरा४०) गालन ( म० की. ) गल चालन भावे ल्य ट । १क्षारण, २ मधु, शहद निःस्रावण । २ वस्त्रपूनकरण, कपड़ोस छानना। गार्वा-बङ्गालमें पन्नामुजिलेक अन्तर्गत एक शहर । यह | गालफल ( मली० ) मदनफलो । अक्षा० २४. १० उ० ओर दे शा० ८३°५० पू० के बोच गालमसूरी (सं० स्त्री० ) एक तरहका पकवान वा मिठाई। दानरो नदो पर अवस्थित है। जनसंख्या प्रायः ३६१० | गालव ( म० पु. ) गन्न-घञ्। १ लोधवत, लोधका पड़े। है। लाख, धूप, कथ, रेशम कोए, चमड़, तनहन, २ केन्दकवृक्ष, तेंन्दका पड़। ३ श्वेतलोध्र, मर्फ दलोद । घो, रूई ओर लोह प्रभृति चीजोंको रफतनी यामि ४ एक ऋषिका नाम । ये विश्वामित्रजीक पुत्र थे । होतो है, और अनाज, तॉवेक बरतन, कम्बल, रेशम, ५ विश्वामित्रक एक शिष्य। इन्होंने भक्ति और सेवा सअषा- नमक, तम्बाकू. मसाले तथा बहुत तरहक आषध पदार्थ से अपने गुरु विश्वामित्रको अत्यन्त मंतुष्ठ किया। विद्या दूसरे दूभरे देशसे यहां आते हैं। ममाप्त होने पर गालवन विश्वामित्रको गुरुदक्षिणा देनके गाष्टय ( स० पु. स्त्री०) राष्टरपत्य पुमान् ठत्र । राष्टि लियं बहुत अनुरोध किया : किन्तु विश्वामित्रन दक्षिणा अर्थात् एक वार प्रसूत धेनुका अपत्य, वृषभ । मांगनमे अस्वीकार किया विश्वामित्रन इन हम कोधित गाह पत ( मंत्रि. ) ग्रहपतरिदं ग्रहपतिर्भावा वा अश्व होकर आठ मौ एमे घोड. मांग जिनका वण श्याम और पत्यादित्वात अगण ।१ ग्रहपतिसम्बन्धीय। (क्लो०)। एक कान हो। गाजीमे गमी पाजा पाकर वेशीघ्र ही गाड- गृहपतिका भाव, घरके स्वामोको इज्जत और प्रतिष्ठा ।। को प्रमत्र कर अपने माथ ले गजा ययातिक निकट पहंचे गाह पत्य ( म० पु.) गृहपतिनो यजमानन नित्य मंयुक्त ययातिक पाम घोड. तो नहीं थे किन्त उन्होंने गालवको मज्ञायां । १ यजमानरूप ग्रहपतिक महित संयुक्त अग्नि अपनी कन्या माधवो दं कर कहा "गानवजी! जो दो विशेष । सौ श्यामकर्ण घोड. द वें उन्हें दम कन्याको दं कर एक Vol. VI.82