पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३६५

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गुचार-गुग्गुल. गुआर ( हि स्त्री० ) गोगणी, ग्वार । कषायरम, उष्णवीय, पत्तबर्षक, सारक, कट विपाक, गुआरपाढा (Eि पु. ) बारपाटा देखा। रूक्ष, अत्यन्त लघ, भग्नमन्धानकारक, शुक्रवधक, स्वर- गुआरी ( हि स्त्री०) बार देखो। प्रमादक, अग्नितिकारी, पिच्छिल, बलकारक, और कफ, गालिन (हि.) । वायु, व्रण, अपची, मेटोदोष, प्रमंह, अश्मरो, आमवात, गुडा ( हि पु० स्त्री० ) माथी, मग्वा, सहचरी। क्लेद, कुष्ठ, आमवात, पोड़का, गण्डमाला तथा लमि- गुडयांवावना स्वनाम प्रमिह वृक्षविशेष । नाशक है। गुएना-ट्राता लताके मदृश एक तरह का वृक्ष ( Vitis इसके मधुर ग्मसे वाय, कषायमे पित्त और तितरम Istifler | इमका फल देखने में ठीक ट्रासाके जम मे कफ नष्ट होता है। नतन गग्गल मांसवधक तथा होता लेकिन भीतर पोल्न रहता है। शक्रजनक है । परन्तु पुरातन होने पर यह अत्यन्त गुग्वरू (हि.)-18 लेखनगुणयुक्त अर्थात् अतिशय काकाकता है। जो गुगरन (हिं पु०) एक तरहको बत। गुग्ग न पक्क जम्ब फलको भांति सुगन्धि, 'पछिल और गुगानी ( हि• स्त्री० ) जनके ऊपरको हसको हिम्नोर ।। सुवर्ण वर्ण आता, नया और शुष्क दुर्गन्धयुक्त विकतवर्ण म्बलमलो। तथा वीर्यहीन होनेसे पुराना ममझा जाता है। गुग्ग ल गुगुनिया (हिं पु०) तदर नचानवाला, मदारी। मेवनकागेके पत्तमें असरम, तीक्षाट्रव्य, अजीण जनक गगैर-पत्राबर्क मोगटगोपरी जिनकी तहमीन । यह अर्थात् गुरुपाकद्रव्य, मैथुन, परिथम, रौद्र, मद्य और अक्षा० ३० ३८ एवं'३१३३७० और देशा ७२५८ क्रोध अतिशय अहितकर है। तथा ७३.४५ पृ• मध्य गयीको दोनों ओर अवस्थित गुग्ग ल जातिभेदसे पांच प्रकार का होता है-महि- है। क्षेत्रफल ८२४ वर्गमीन और सोकसंख्या प्रायः षाक्ष, महानील, कुमुद, पद्म और हिरण्य। देखने में ११८६२२ है। इसमें ३४१ गांव बसे हैं। गुगर ग्राम अञ्जन जेमा मषिास कहलाता है। अतिशय नोलवर्गा- हो मदर है। मान्नगुजारी तथा सेम १३३००० रु० है। को महान'ल्न, कुमुदकुसुम जैमी अाभाविशिष्टको कुमुद, गुग्ग र (हिं. पु०) गगन देखा। पद्मवर्ण को पद्म और मुवर्ण व गुग्गु लुको हिरण्य कहते गुग्गु ल ( मं० पु.) गोजोत गुज विप , गुक् रोगः ततो हैं। इसमें म हषाक्ष तथा महानीन हाथी के लिये और गुडति रक्षति गुक गुड़-कस्य लकार। १ स्वनामख्यात । कुमुद एवं पद्म घोड़ के लिये आरोग्यजनक है। केवल- वृक्षविशेष । गगन . ३ रक्तशोभाचनपक्ष । मात्र हिरण्य जातीय गुग्ग लुसे ही मनुष्यका उपकार होता गुग्ग ल ( मं० पु०) गुक रोगस्तस्माद् गुडति रक्षति, गुड़ है । अवस्थाविशेष महिषाक्ष भी आदमौके काम कु डस्य लकार: १ वृक्षविशेष, कोई पड़। २ उक्त आता है । ( 11.11 १ भाग) वृक्षका निर्याम तथा सुगन्धि द्रव्यविशेष, गुग्ग लु पेड़का | ___बहुत दशबूदार 'होनसे गुग्गलको भारतवासी धप और कोई खशानदार चोज । दमका संम्मत पर्याय- जैमा व्यवहार करते हैं। हमको अग्निमें डालने पर खुश- कुम्भ, उन्नखलक, कौशिक, पुर, कुम्भोल, खनक जटायु, बूसे घर भर जाता और बड़ा आनन्द आता है । प्रयोगा कालनिर्यास, देवप, मवसह महिषाक्ष, पलङ्गषा, | मृतक मतानुसार ग्रीष्मकालको मरुभूमिमें वह वृक्ष उत्पन्न यवनद्दिष्ट, भवाभीष्ट, निशाटक, जटाल, पुट, भूतहर, होता है । पोछ शीत ऋतुको शिशिरके जलमें भीगने पर शिव, शाम्भव, दुर्ग, यातुन, महिषासक, देवेष्ट, मरु उससे एक प्रकार रस वा निर्यास निकलता है। इसोका दिष्ट रक्षोहा, नक्षगन्धक और दिष्य है । वह कट, नाम गुग गुलु है । इसको विशेष परीक्षा करके लेना तिक्त. उष्ण, रसायनविशेष और कफ, वात, काम, कमि, | चाहिये । विशद्ध गुगगुलु प्रागमें डालनेसे जल उठता, वातरोग, कद, शोथ और अर्शोनाशक है। (रानि.) धुपमें उड़ता और जलमें निक्षेप करनेसे चिपचिपान भावप्रकाश मतमें गुमा लु विशद, तिक्त, कटु तथा लगता है। पुरातन, अङ्गारवा, गन्धहीम वा विवर्णको