पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२५६

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२२६ पहाराष्ट्र रहनाथस्वामी थे । उनके बनाये हुए प्रधों में वृद्विकाव्य-: ही पाण्डित्य भौर तर्फ विचारको बाहुल्य देना जाता .. गृत्ति, भगवद्गीताको टोका और योगवाशिष्ठका भाषा- है। पढ़ दशन पौर मशादा पुराण यामनके पारतलास न्तर उल्लेघनीय है। मधुर पदविन्यासके गुणसे निम्नोक थे। निगमसार, जोयतत्य, फर्मतस्य, घेदतस्य, re- तीन प्रथों का विशेष भादर है। स्तुति, नामसुधा, कृष्णलीला आदि विषयों में उन्होंने रङ्गनायके भतीजे श्रीधर एक लोकप्रिय कवि थे। मौलिक प्रन्यको रचना की है। यथार्थदीपिकाको शोर उनके पनापे पाएडवप्रताप, हरिविजय, रामविजय, शिव• फर अन्यान्य प्रन्यों में प्रसादगुण यथेष्ट देखा जाता है। लीलामृत और जैमिनीय अश्वमेध घे पांच अन्य बड़े हो उनके बनाये हुए भरिके तीन शतकका अनुपाए .. मनोरम हैं। ऐसा प्रन्थ महाराष्ट्रीय दक्षिण-पथौ यात अनेक जगह मूलप्रन्यको अपेक्षा बहुत सरस दुमा है। फम देखने में आता है। महाराष्ट्र-रमणी-समाजमें और महाराष्द्रदेशमें यामन असे उत्राट काथ्यानुसाद मौर' । संस्कृत मापानभिश पाठकमण्डलीमें श्रीधरसे बढ़ कर, विद्वान् 'न भूतो न भविष्यति' अर्थात् न तुप महंगि: और किसी भी कयिका सम्मान नहीं हुआ। श्रीधरने सरलार्थपूर्ण यमक रचनाका चातुर्य उनको प्रतिमा . जित्ने अन्य बनाये उनमेंसे कोई सी ५० हजार ग्लोकसे | फसे । एक प्रधान गुण है। । कमका नहीं है। एकनाथके पोते मुफ्तेश्वर रामायण दिठ्ठल कयि यामगफे पूयवती तथा महाराष्ट्रीप और महामारतके आधार पर दो स्वतन्त्र फायप्रन्थ लिग्न भाषामें यमक, चित्रकाव्य और फटश्लोक रचनाके प्राम गये हैं। मुफ्तेभ्यरफा रामायण विशेष प्रशंसनीय नहीं होने पर भी महाभारतमें उनको कविप्रतिभाका जैसा पथप्रदर्शक थे। उन्होंने यिहण चरित, रसमझरो, पिर- जीयन, सोता-स्थयम्बर, सचिमणो स्ययम्पर भार यह परिचय पाया जाता है वैसा महाराष्ट्र-साहित्य भरमें किसीका नहीं है। साधकमयर 'यहिरापिसा'ने इस संख्यक पदावलीकी रचना कर महाराष्ट्र साहित्यको 1 सेवा कर गये हैं। जयराम स्वामीका शान्तिपञ्चीकरण समय श्रीमद्भागवतका दशम स्कन्ध मराठी भाषा अनु तथा फेशब स्वामी, मानन्दस्यामी और मोरयादेव पाद किया। आदि कवियों की भक्तिमानपूर्ण कवितायलो भी उन्लेस. १७यीं शताब्दोके दूसरे :श्रेष्ठ कवि वामन पण्डित नीय है। थे। घे भी यदुतसे अन्य रच गपे हैं । यामन पहले घोर तयादी, फर्मकाएडफे पकान्त पक्षपाती और कट्टर . अभी तुकाराम और रामदासका नामोल्लेप करगंमे वैष्णय थे। देवमापा भिता प्राप्त जनकथित भाग : ही इस युग कयियों का परिचय एक. महारसे गेष. योलचाल करना ये पाप समझते थे। नाना देश हो जाता है। तुकारामका चरित और उनके रचित पर्यटन फर उन्होंने यहुतसे विजयपत्रोंका संप्रद किया अभङ्गका विषय पाठकों को अच्छी तरह मालूम होगा। अभङ्गका विषय पाठको को अच्छी तरह मात था। किन्तु रामदास स्यामीफे निकर उनका दर्प चूर्ण तुकाराम शब्द देतो । उनको भगढ़ मामा भक्तिपूर्ण हुमा। तभीसे ये मतमतको अवलम्बन फर भक्ति । फयितामाला पढ़ कर बम्बई-शिक्षाविभाग भूतपूर्व हिरे. मार्गके प्रचारमें लग गये। रामदास स्वामीफे उपदेश. परर सर मलेकजएटर पाएट महोदयने कहा है- से उन्होंने संस्एतका परित्याग कर देशीय भाषामें अन्य | जिन्होंने नुकारामका माग पढ़ा है, उसके निकट नोनि- लिखना आरम्भ कर दिया। मराठी भापामें यथा--- तस्यकी प्रशंसा करना था। दीपिका नामक उन्होंने जिस टोकाकी रचना को उसमें गोदापरीके किनारे सम्पूमाम १६०८ को राम पड़ी दक्षताफे साथ सांण्य, जैन, वीर मादि मतोंका दासका जम्म हुमा। बचपनसे रागको उपासना । खएडन मोर भई सायादका समर्थन किया गया, इनका विशेष मनुगग था । धूप-प्रहमाविका परित है। हानेश्वरके मायार्थदीपिका प्रसाद-गुण जैसे सुन कर वरपनमें दी उनके हदपमै भागमती , मोतमोतभापमें पिपमान ६ पयार्थदीपिका भी पैसा लालसा दलयती हो गई थी। विषादमे पहले ही .