पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महाराष्ट्र नारियों को नगद रुपये देनेकी प्रथा निकाली। सेना- भारतमें सभी जगह सेनापतियों को तनखाह के बदले पतियों और सनिर्योको भी जागीर देना शुरू कर दिया। जागीर मिलती थी। स्वयं सेनापति हो सैनिको. गया । सभी राजकीयपद फर्मचारोके जीवनयापी तनम्बाह देते थे। इससे प्रकृत सेनादलके साथ राशामा किये गये । मुसलमानी जमानेमें अन्यान्य पैतृक सम्पत्ति विशेष परिचय नहीं रहता था। अब समो सेनापति की तरह पिताके पद पर भी पुत्रका अधिकार रहता था। वागी हो जाते थे, उस समय सेनादल मी राजा का पक्ष इससे प्रजाफे प्रति अत्याचार और राजकार्य की उन्नति ' न ले कर सेनापतिका ही पक्ष लेता था | महाराष्ट्र में सा. होने नहीं पाती थी। आठ प्रधान मन्त्रिोंसे मन्त्रिसभा : से पहले इसी कुप्रथाका संस्कार हुमा । सामाग्य पदाति- संगठित कर प्रत्येक राजकार्य में उनसे सलाह लेनो से ले कर प्रधान सेनापति तक समो राजसरकारसे हो पड़ती थी। आगे चल कर अष्ट प्रधान पद्धति उठा दी, नगद रुपये तनखाहमें पाने लगे। शताधिप जुम्नेदार. गई जिससे महाराष्ट्र राज्यकी विशेष क्षति हुई थी। फा येतन एक सौ होन (साढ़े सोन रुपयेका एक होन), शियाजीको शासनप्रणालोमें एक और विशेषता थी। एक हजारो सरदारका ५ सी होन और पांच हजारी यह थी देश देशमें दुर्गका निर्माण । वैदेशिक आक- सेनापतिका २॥ हजार होन स्थिर हुमा । महारानी मणसे देशको बचाने के लिये स्वराज्यफे उत्तर, पश्चिम घुड़सवार सेना दो भागों में विमक थी। जो राजसा. और दक्षिणमें उन्होंने १४ सौ दुर्ग वनयापे थे। ये मय । कारसे घोप्टे और अनशन ले कर युद्ध करते थे ये पार. दुर्ग प्रायः मण्डलाकारमें महाराष्ट्रभूमिको चारों ओरसे' गोर और जो भपने घोड़े, दाल, सलपार मौर बन्दूक से घेरे हुए हैं। समुद्र के किनारे जलमें भी द्वीपफे ऊपर कर युद्ध फरते घे घे शिलेदार कहलाते थे। शिलेदारी दुर्ग बनया फर उन्होंने सिहो, मंगरेज, पुर्तगीज आदि.. फरना मरहता लोग अति गरियका कार्य समभत थे। के माणसे यचनेका प्रबन्ध भी कर दिया था । महा : इम्हे भी महीनयारी तनवाद६ होनसे १२ होन नका राष्ट्र के सरतल प्रदेशमें प्रसिद्ध नगरों की रक्षाके लिपे । मिलती थी। तनसाद नियत समयमै देनेका प्रबन्ध था। चहारदीवारो भी बनाई गई थी। प्रत्येक दुर्ग में एक . सेनादलमै स्त्री, दासी. फलवार मादिका प्रपेश निश्यि मराठा जातिका हवलदार ओर उसको अधीनतामें एफ था। टूटका माल सैनिकों को नहीं मिलता था, राम. प्रामण सरनोस ( सेनालेखक ) और प्रमुकायस्थका सरकार में जमा किया जाता था। इस मा निपोका कारखानानवोस कर्मचारी रहता था। दुर्गरक्षा, दुर्ग को उत्साहन न कर सके, इसके लिये गुमयर लिगुन, संस्कार, दुर्गाधीन प्रदेशको राजस्य व्यवस्था और रहता था । जो रणक्षेत्रमें पीरता दिखलाते थे, उग रा. दुर्गमें रसद जुरानेका भार मो उन्हों पर सौंपा गया कोपसे सुवर्णादि मलद्वार पुरस्कार मिलता था। था । प्रत्येक दुर्गमें सभी प्रोंके कम मारो समान भिवानीको गेष्टासे महाराष्ट्रीय नौसंगादलों मोर अंगी संख्या में रहते थे, इससे घर्णगत यिपादि पढ़ने महो। जहाओंकी ऐसी चल बनी, किसी , पुसंगीत भोर