पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४१९

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पाधवराव ३.३ पेशवाको युदयात्रामें कुछ अरसा लग गया। उनके | पूना आने पर माधवरावको मालम हुआ, कि बम्बई- . . कर्णाटक आनेके पहले ही हैदरफे सेनापति फजल पनि गवर्मेएटने मोस्तिन नामक एक साहवको उनके पास गोपालराव पटवर्द्धनको परास्त किया था। किन्तु दूतके रूपमें भेजा है। अंगरेजोंका अभिप्राय था, कि घे माधवका भाग्य अच्छा था, उन्होंने कर्णाटक आते हो। जिससे हैदर अथवा निजामके माथ किसी भी सन्धिसत्र. आन्नवेती नामक स्थानमें हैदर अलीको हराया। यहां में आवद्ध होने न पावें। किन्तु माधवरावने उस प्रस्ताव तक, कि हैदर नगद ३२ लाख रुपये, मुरारराव घोरपड़े. को कबूल नहीं किया और दूतको यह कह कर लौटा को सारी सम्पत्ति और सायनरके मवायका पावना छोड । दिया, कि घे (माधवराव) जैसा देखेंगे घेस' हो करेंगे। देनेको बाध्य हुए। १७६५ ई०में माधवराय इस प्रकार पीछे माधवने यह भी सुना, फि रघुनाथराव उन्हें सिंहा. विजयपताका फहराते हुए स्वदेश लौटे। इधर गोपिका सनच्युत करनेका आयोजन कर रहे हैं। अभी उसका वाई और आनन्दीवाईको परस्पर से माधवराव और | प्रतिविधान होना उचित समझ कर माधवराव २५००० रघुनाथराधमें बहुत मनमुटाव हो गया। माधयरावको | हजार घुड़सवार ले कर नासिक गये और रघुनाथ पर मालूम था, कि उनके मचा मौका पाने पर जानोजी चढ़ाई कर दी। रघु नाथ भी विलकुल तैयार थे। किन्तु भोंसले अथवा निजाम गलीसे सहायता ले सकते हैं। | दुर्भाग्यवशतः इस समय उनके साथी कुकुम तांतिया इस थाहासासे उन्होंने १७०में निज़ा अलोके साथ और तकाजी होलकर उन्हें छोडकर पेशवादलमें चुपके मेल कर लिया। उसी साल निजाम मलीने भी मिल गये थे। रघु नाथ हार खा कर घोरप वा दुधहाट हैदर और मरहठोंका प्रभाव खर्च करनेके अभिप्रायसे नामक दुर्ग में छिप रहे । माधवरावने नासिकको लटा अंगरेजोंसे सन्धि कर ली। यह संघाद माधवरारावको और रघु नाथके अनुचरोंको वन्दी फर उक्त दुर्गम गोला बहुत जल्द मालूम हो गया। उन्होंने समझा था, कि बरसाने लगे। दो तीन दिन लगातार गोला बरसानेसे इस सम्मेलनसे मरहठोंके पक्षमें विशेष क्षतिकी सम्मा चारों ओर मानो अग्निमय हो गया। रघु नाथको यव पना है। इसलिये चे फौरन कर्णाटक प्रदेशमें जा धमके। दुर्ग में रहनेका साहस नहीं हुआ। ये वाहर निकल कर हैदरसे ३० लाख और कर्णाटकके अपरापर सामन्नोंसे माधवगवके समीप आये। माधवने चचाके पैर छू कर भी प्रायः १७ लाख रूपये वसूल कर निजामक रणक्षेत्रमें अपराधके लिये क्षमाप्रार्थना की । भाखिर ये रघनाथको आनेसे पहले ही वे दक्षिणपथमे लौटे। निजाम और हाथो पर चढ़ा पूना आये। यहां आदरपूर्वक उन्हे: एक अंगरेजोंने माधवरावसे उक्त रुपयेमेसे कुछ मांगा, किन्तु बड़े घरमें एक प्रकार नजरवन्दी तौर पर रखा। उन्होंने एक कीड़ी भी न दी इस समय रघुनाथरायने नागपुरके जानाजी भोसलेंने रघु नाथकी मदद पहु- अपना प्रभाव फैलानेकी आशासे एक दल सेना ले कर चाई थी। १७६६ ई०में चचाको बन्दी कर पेशरा ग्वालियरकी याला कर दो । राणा छत्रशालके साथ उन जानाजोका दमन करने के लिये अग्रसर हुए । · नागपुर का बहुत दिन तक युद्ध होता रहा । माधवरावसे उत्साह पतिको पेशवाका सामना करनेका साहस नहीं हुआ। • पा कर छलसालने अपनो पराजय स्वीकार न को। बहुत : घे तीन मास तक नाना स्थानोंम भरके। आखिर १५ दिन तक जो युद्ध चलता रहा उससे रघुनाथ ३२ लाख लाख रुपया मजर दे कर छुटकारा पाया । नागपुर जीतने उपपेके ऋणि हो गये। आखिर घृणा, लजा और मना । के बाद माघयराव बड़ी धूमधामसे पूना लौटे। किन्त कटसे घे नासिक लौटे । इस समय माधवराव आ; यहां वे निश्चिन्त ये न सके । कुछ दिन बाद उन्हें कर उनसे मिले। , रघुनाथका माधवरावके साथ जो | मालम हुआ, कि हैदरअली पुनः अपने को प्रबल प्रतापो मनमुटाव था वह दिनोंदिन बढ़ता ही जाता था। उन्होंने समझ कर मरहठोंके ऊपर अत्याचार कर रहा है। यहां अमृतराव नामक एक ब्राह्मणपुत्रको गोद ले कर उसोको तक कि यह भनेक महाराष्ट्र सामन्तोंसे कर भी उगाहने अपना उत्तराधिकारी बनाया। Vol. xv1. 94