पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कार सः मान्य-मान्यस्थान ४३५ मान्द्य ( स० क्ली०) मन्दस्य भावः फर्म या मन्द | इस अमृतस्त्राषिणी अंगुलीको पा कर यह एक हो दिनमें (पत्यन्तपुरोहितादिभ्यो यक् । पा ४११।१२८) इति यक्। बढ़ गया। इसी बालक मान्धाताने चक्रवत्ती राजा हो

१-रोग, योसारी। २ मन्दता, आलस्य ।

सप्तद्वोपा पृथ्वीका भोग किया था । इनके सम्बन्धमें - . "विश्वस्ते च ततस्तस्मिन् पुराधसि रकार सः । एक श्लोक यों है- . मान्यमल्पतराहारकृशोकृत तनुर्मूपा॥" "यावत् सूर्य उदेति स यावच्च प्रतितिष्ठति । (कथासरित् २४११३५ )। सर्व तत् यौपनाश्यस्य मान्धातुः क्षेत्रमुच्यते ॥" मान्धातापुर ( स० क्लो०) एक पाचोन नगरका नाम । (विष्णुपु० ४१२ म०) मान्धात (सं० पु० ) मां धास्पतोति धेट-तृच् । राजा सूर्यदेव जहांसे उदय होते और जहां अस्त होते हैं युवनाश्यके एक पुत्रका नाम । उसके वोचका समस्त स्थल ही युवनाश्ववंशीय राजा मान्धाताका क्षेत्र था। इनकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें विष्णुपुराणमें लिखा है:- मान्धाताने शशविन्दुकी कन्या विन्दुमतीसे विवाह पुत्र न होनेके कारण सूर्यवंशीय राजा युवनाश्व संतार किया और उसके गर्भसे पुरूकुत्स, अम्बरीप और मुचु- छोड़ मुनि लोगीके माधममें वास करने लगे। काल- कुन्द नामके तीन लड़के और पच्चास कन्याएं उत्पन्न क्रमसे मुनियोंने दयापरायण हो उनके पुत्रोत्पादनके लिये यक्ष आरम्भ किया। आधी रातमें यज्ञ समाप्त होने हुई। (विष्णुपु० १२ अ.) पर मुनि लोग मंत्रपूत जलकलसको वेदोके योच रख कर मान्धान (संत्रि०) १ मान्धातृ-सम्बन्धोय। (पु.) सो गये। ऋपियोंके सो जाने पर प्याससे अत्यन्त | २मान्धाताका वंशधर । पीड़ित राजा युवनाश्वने मुनियोंको विना जगाये उस मान्धोद (स'. पु०) माधोदका गोतापत्य । जलको पी लिया। पश्चात् नोंद टूटने पर ऋपि लोगोंने माम्मथ ( स० वि०) मन्मप-सम्बन्धीय, मन्मथका । पूछा, "किसने इस मन्त्रपूत जलको पीया है ? इस जल मान्य ( स० वि०) मान्यत इति मान-कर्मणि ण्यत् । १ को पी कर युवनाश्यकी पत्ती पुत्र प्रसय करेगी, यह जल अन्ये, पूजनीय, सम्मानके योग्य । पर्याय-पूज्य, प्रतीक्ष्य, .उन्होंके लिये था ।" मृपियोंको इस बातको सुन राजा भगवान्, भट्टारक 1२ प्रार्थनीय । युवनाश्यने कहा, 'मैंने बिना जाने प्याससे पीड़ित हो इस 'यथा ये भरतो मान्यस्तथा भूयोऽपि राघयः । जलको पीया है।' कौशल्यातोऽतिरिक्तञ्च मम मुभूपते पहु॥" (रामायण) इस मंत्रपूत जलके प्रभावसे राजा युवनाश्वके ३ विष्णु। ४ शिव, महादेव । ५मत्रावरुण । गर्म रहा। समयके प्रभावसे यह गर्भ प्रतिदिन बढ्ने मान्यच्च (सं० को०) मानस्य भावः त्व। पूज्यत्व, लगा । अनन्तर समय पा कर राजाके पेटके दाहिने भाग- मान्यका भाव या धर्म, सम्मान या पूजा। को फाड़ कर एक लड़का निकला। लेकिन इमसे, मान्यमान (सं० पु०) मन्यमानका गोलापत्य । राजाका कुछ मी अनि नहीं हो पेट माह कर मान्यमान (दिपु०) अतिशय सम्मानयोग्य। लड़केके बाहर निकलने पर अपि लोग वोले किफिस- मान्यव (सं० त्रि.) मन्युसम्बन्धीय । का स्तन पान कर यह लड़का जीवित रहेगा? अनन्तर मान्यवती (सं० स्त्री०)१ माननीया, यह स्त्री जो समझाने- देवराज इन्दने यहां आ कर कहा, 'यह लडका मझे। के योग्य हो। २राजकन्याभेद । धारण करेगा, अर्थात मेरो सहायतासे जीवित रहेगा, ! मान्यस्थान (सं० क्लो०) मानस्य स्थानं । पूज्यत्यकारण, इसी कारण इसका नाम 'मान्धाता' होगा।' । मादर या मानका कारण । ____ तब देवराज इन्टने लड़के के मुखमें अपनी तर्जनी "वित्त वन्धुर्ययः कर्म विद्या भवति पञ्चमी । अंगुली ढाल दो । लदका अगुलीको चूसने लगा।। एतानि मान्यस्थानानि गरीयो यद्यदुत्तरम् !