सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मिथिला पुरी-निर्माण करने में सामथ्यशाली होनेके कारण | १४ प्रसिद्धक, १५ कृत्तिरय, १६ देवमीढ़, १७ विबुध, ही ये जनक नामसे विख्यात हुए । इनके १८ अन्धक, १६ कृतिराय, २० कृचिरोमा, २१ स्वर्णरोमा, तीन नाम है, . मिथिल, वैदेह और जनक । विष्णु-: २२ ह्रस्वरोमा, २३ जनक और कुशध्वज । किन्तु विष्णु- पुराणमें लिखा है, कि मृतदेहसे जन्म होनेसे ही जनक । पुराणके चतुर्थ अंशके पांचवें अध्यायमें उन वंशको नाम पड़ा। उनके पिता विदेह ( देहविहीन) एक बड़ी सूची लिखी है । यधा,- निमि (विदेह ), हुए इससे इनका नाम विदेह था। मथन द्वारा उनका २ जनक, ३ उदायानु, ४ नन्दोवर्द्धन, ५ सुकेतु (केतु), जन्म हुआ इससे घे मिथि नामसे प्रसिद्ध हुए । ६ देवरात, ७ वृहद्रथ (बृहदुक्थ ), महावीर्य, ६ सुधृति, श्रीमद्भागवत्ने भी इसी यातका समर्थन किया है। *. १० धृष्टकेतु, ११ यंश्य, १२ मरु, १३ प्रतिवन्धक, वाल्मीकीय रामायणमें भी निमिके पुत्र गिधि और मिथि- १४ कृतरथ (रुतिरय ), १५ कृति ( देवामोढ , १६ के पुत्र जनक-ऐसा हो कहा गया है-- वियुध, १७ महाधृति, १८ कृतिरात, १६ महारोमा, "निमिः परमधर्मात्मा सर्वतत्त्वयतां वरः । २० सुवर्ण रोमा, २१ हस्वरोमा, २२ सीरध्वज तस्य पुत्रो मिधिर्नाम् जनको मिथिपुरकः ॥" और कुशध्वज, २३ सीरध्वजके पुत्र भानुमान इसी जनक नामसे उनके पीछेके राजाओंने भी और कन्या सीतादेवी, २४ शतद्युम्न, २५ शुचि, २६ जनककी उपाधि प्रहणको यो । अयोध्याधिपति दशरथ- ईजवह ( ऊर्जवाहु), २७ सत्यध्वज (भारद्वाज), २८ तनय रामचन्द्रने जिस जनक दुहिता सीताका पाणिग्रहण कुणि, २६ असन, ३० ऋतुजित् (ऋतुजित् ), ३१ अरिष्ट- किया था, वे सीता राजा हस्यरोमा ज्येष्ठ पुत्न राजपि । नेमि, ३२ श्रुतायु (शतायु ), ३३ श्रुतायुध, ३४ सुपार्श्व सीरध्वजकी यशभूमिसे उदय हुई थीं। इसीलिये उस। (सूर्याभ्य ), ३५ सञ्जय (संनय), ३६ क्षेमारि, ३७ अनेना, यशभूमिका नाम सीतामढ़ी रखा गया था । राजा ३८ मोनरथ (मानरथ), ३६ सत्यरथ, ४० सात्यरथि, ४१ हस्वरोमाके कनिष्ठ पुल साङ्काश्य नगराधिप कुशध्वजको उपशु, ४२ ध्रुत (उपगुप्त), ४३ शाश्वत, ४४ सुधन्या, ४५ कन्या माण्डवीका भरतने और श्रुतकीतिका शत्रुघ्नने। सुभास (भास या सुभाष ), ४६ सुश्रुत, ४७ जय, ४८ पाणिग्रहण किया । सोरध्वजको दूसरी पुत्री उर्मिला- विजय, ४६ ऋत, '५० सुनय, ५१ चीतथ्य, ५२ सञ्जय, ५३ 'देवी लक्ष्मणको घ्याही गई थी। क्षेमाश्य, ५४ धृति, ५५ बहुलाव और ५६ कृति । ये सभी रामायणमें जनकवंशकी एक नामावली पाई जाती राजर्षि कहलाते थे। है। यह इस तरह है,-"१ निमि, २ मिथि, ३ जनक, न्यायदर्शनके रचयिता महर्षि गौतम इसी जनकवंश- ४ उदायसु, ५ ननिवर्द्धन, ६ सुकेतु, ७ देवरात, ८ गृहद्रध, के पुरोहित थे। इसो समयसे मिथिलामें न्यायको चर्चा ६ महायो>, १० सुधृति, ११ धृष्टकेतु, १२ हर्यश्व, १३ म विशेष रूपसे चली जाती है | ___महर्षि गौतम मिथिलामें जहां तपस्या करते थे, माज

  • श्रीमद्भागवतके नयम स्कन्धमै लिखा है,--

भी उस स्थानको गौतमानम कहते हैं । यह गौतमा- "भराजकमय' नृणां मन्यमाना महर्षयः । धम आज कलके भरोरा परगनेके ब्रह्मपुर मौजेमें अय- देहं ममस्यः स्म निमः कुमारः समजायत ॥ स्थित है। गौतमपत्नी अल्या जहां केवल वायु पी जन्माना जनकं सोऽभूद्विदेहस्तु विदेहजः । कर जोषित और मस्मराशि पर योगनिमग्न रह कर , मिथिलो मायनाज्जातो मिथिला येन निर्मिता॥" रामच के दर्शनसे पापमुक्त हुई थीं, वह स्थान आज (भागवत ६।११३-१४)। __* नवद्वीप (नदिया) के मुखोज्ज्वल करनेवाले प्रसिद्ध नैया- उर्दू भाषामें लिखी आईन तिरहुत नामक पुस्तकमें शिखायिक वासुदेव सार्वभौमने मिथिलासे न्यायशास्त्र अध्ययन किया था। है, कि प्रजा पालनमें राजा जनक पिता जैसे थे, इससे इस स्वनामधन्य रघुनाथ शिरोमणि और स्मार्त रघुनन्दन दरभङ्ग के . शकी 'जनक' उपाधि हो गई। सर्पप ग्रामवासी पक्षपरमिश्रके छात्र थे। ,