महम्मद करके भी ये ग्राहिमका नाम मिटा ही देना चाहते थे, खजिरीको महम्मदफै पनि उप हो गया। महम्मद 'फिर भी अपने सनातन इस्लामघम में मूर्तिपजनका मूर्तिपूजन प्रयाका लोप कर एक यरवाद इलामधर्मकी प्रश्रय देनेसे ये जरा भी संकुचित न हुए। धर्मके सिया स्थापना तो की, पर सांसारिक सुखलालसा उनके और भी अन्यान्य विषयों को धर्म में स्थान देपे कोरा हृदयसे दूर न हो सकी। धर्मप्रवर्तक हो कर भी इस इस सर्दारीको अपने कायमें करनेके लिये अप्रसर हुए। प्रकार धनऐश्वर्यकी आशा करना महम्मद जैसे ज्ञानी . कोराइसोंको अपने हाथमे लानेके लिये महम्मदने व्यक्तियों के लिपे उचित न था। इसी सुग्नलालसाने सरदार आयु सोफियानको मयकाफे दक्षिण एक विस्तृत इनकी मृत्युके बाद इस्लामधर्मको फलडूिन कर प्रदेशका शासन भार सौंपा। इतना ही नहीं, उन्होंने ' दिया था। यहां भी कहा था, कि जो सब फोराइस इस्लामधर्मफे पक्षः। धर्मराज्यको मित्ति दृढ़ करनेके लिये महम्मदने पाती होंगे तथा उसकी उन्नत्तिके लिये जीयन उत्सर्ग कर्मराज्यको स्थापना की थी। भायु-सोफियानको राम्य- करेंगे ये ही मेरे पापाल होंगे। महम्मदके इस वाक्य, दान, अपने उमियदयंशमें राजशकिका मारोप सपा तथा उदारतासे कोराइसोंने इस्लामधर्म को सोकार । कोराइस जातिको इस्लामधर्म रक्षाका भार दे कर हनने कर लिया। जो पक्षपात दिपाया इससे पारोजियाका सहम ... मकायार्लोफे ऊपर महम्मदको ऐसी उदारता देख होमें प्रज्यलित हो सकता था। उनकी कार्यवलि मदीनाके लोग बड़े दुःखित हुप । . उन लोगोंने महा। उनके प्रयतित धर्मानुकूल विलफुल म थी। मतपय पह म्मदसे कहा, 'इम लोगोंने भी अब पैगम्वरके कार्यमें स्पष्ट है, कि इस्लामधर्मफे लिपे जिस पवित्र भोयनको भारमोत्सर्ग कर दिया है, अतः हम लोग भी इस कार्यके : माघश्यकता थी यह राज्यापहारी गर्यित इस महम्मदमें लिपे पुरस्कार पाने योग्य हैं। अपने प्रधान सहायकों नाममान भी न था। . . तथा धर्मरक्षोंके मुंहसे इस प्रकार हदयप्राही वचन सुन मफा-विजयके वाद संपूर्ण भरय इस्लामधर्ममें कर महम्मदका हृदय पिघल आपा और ये बोले, दीक्षित हो गया। फेयल नमरामयासी ईसाइयों, पाद- तिम लोगौने इस भयानक समयमें मेरो सहायता कर दियनयासी मगीयो तथा याटियोती दियनयामी मगीयो तथा यहदियों न हो इस धर्मको स्वीकार परमात्माको माहाका पालन किया है। यह और कुछ नहीं किया। पहले हो यह आये हैं कि दोनाइन युद्धफे नहीं, फंघल उन्ही की कृपाका फल है.। अन्तिम दिन तुम वाद हयामीनोंने इस्लामधर्म स्वीकार किया था। इस लोग उनसे अयश्य पुरस्कार पाभोगे। मेरे साथ रह चार घे लोग महम्मदफे शिष्य हो कर ताफ्यासी तकीफों कर जो तुम लोगोंने ईयरफे कार्य किये, इसके लिये मैं का दमन करनेके लिपे मागे बढ़े। वापिर तकीपनि 'भो आजीवन तुम सपोंके साथ रहनेको प्रतिक्षा करता आत्मरक्षामें मसमर्थ हो कर महम्मदको धारण ली। . । आजसे रस्लामधर्मका केन्द्र (मदीरात-मल्-इस् दाईफ दूतोंने महम्मदफे पास मा निवेदन किया कि लाम ) तथा मेरा यासस्थान मदीना होगा।" मद- हमारे देशयासो मूर्तिपूजाके घोर अन्धकारमें निमग्न है। म्मदफी इस सहायतासे गदगद हो मदोनायाले प्रेमाशु ऐसे निर्योध दुए संप्रदायको अगर मदिरापान तया भल. बहाने लगे और विरानुगृहीत इस व्यक्तिफे सुख तथा लाटांधोको पूजामादि भसा किया करने न दी जायगी दुसमें भागी होनेका संकल्प किया। इस प्रकार अपने तो ये सहममें मनको प्रयोघ नहीं दे सपने मौर तय को फोरासीको अपेक्षा मधिक अनुगृहीरा समझते हुए मपे धर्म में इन लोगों का माना असम्मय हो जायेगा। घे लोग यहांसे विदा हुए। . .. इस पर महम्मदने गुस्सम मा कर' उत्तर दिया, जोरानाका लूटका माल जो उन्होंने लोगों के बीच विश्वस्त व्यकिमासको हो मधपानादि व्यसनामियाका बारा था, उसीसे वाहुरे महम्मदयो :दल में मिल गये थे। भयश्य परित्याग करना होगा। ये मhिei. घर मकासालों के प्रति महम्मदका मधिक प्रेम देष अली देकर कमांव मगयानमें भारमसमर्पण करे। Vol. III, 19
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