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छठा अध्याय

जिन स्त्रियों से हँसी करने का सम्बन्ध होता है उनसे कभी कभी केवल सभ्यता पूर्ण कुछ विनोद किया जाये। भौजाई से हंँसी करना शिष्ट नहीं जान पड़ता और उससे पैर पड़वाना तो और भी असभ्य है । यथार्थ म भौजाई का स्थान माता के लगभग है, इस लिये देवर का कर्तव्य है कि यह भौजाई से नम्रता और आदर का व्यवहार करे। ये विचार बहुधा ऊँची जातियो से ही सम्बन्ध रखते हैं, क्योकि अन्य जातियों में तो भाई के मरने पर भौजाई के साथ पुनर्विवाह कर लेने की प्रथा पाई जाती है। बूढ़ी और जेठी स्त्रियों के साथ विशेष नम्रता का व्यवहार आवश्यक है। उनके अप्रसन्न होने पर भी उन्हें उत्तर देना उचित नहीं है, बरन उनसे बार-बार क्षमा मांँगने की आवश्यकता रहती है । उनको अपने काम-काज में सदा सहायता दी जावे और उनकी आज्ञा का सदा पालन किया जावे। बहुधा तरुण महिलाएँ बूढ़ी स्त्रियों का अनादर करती हैं अथवा उनकी हंँसी उड़ाती हैं, यह बहुत ही अनुचित प्रथा है। हिदुस्थानी समाज में जिस आजी का आदर उसके नाती रानी के समान करते हैं, उसकी ओर भी घर की तरुण स्त्रियाँ अथवा लड़कियांँ कभी-कभी अनुचित व्यवहार करने लगती हैं। यह बर्ताव बहुत ही निन्दनीय है।

यदि मार्ग में कोई स्त्री सामने से आती हो तो उसके लिए मार्ग छोड़ देना उचित है । अनजान स्त्रियों के पीछे पीछे अथवा उनकी बराबरी से चलना भी अनुचित है । किसी प्रमुख स्थान में बैठकर रास्ते में आने जानेवाली स्त्रियों की ओर देखते रहना अशिष्टता है। जिन मेलों में बहुधा स्त्रियांँ ही जाती हैं उनमें पुरुषों को बिना किसी विशेष आवश्यकता के न जाना चाहिए। इसी प्रकार जिस घाट पर स्त्रियांँ नहाती हो वहाँ जाना अथवा एक अोर खड़े होकर उनकी तरफ देखना पुरुषों के लिए अनुचित है। सवारियो

हि० शि०—७