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पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/९३

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पाँचवाँ अध्याय


विवाहादि कार्यो में बहुधा ऐसा अवसर आजाता है कि लोग किसी व्यक्ति के गुणों को न पूछकर उसके दोष पूछते हैं। ऐसी अवस्था में उत्तर-देने-वाले को उचित है कि यह साधारण रीति से इतनी ही सूचना दे देवे कि अमुक मनुष्य के साथ सम्बन्ध होना ठीक है या नही। यदि प्रश्न पूछने-वाला मनुष्य चतुर होगा तो वह उत्तर-देने वाले मनुष्य के इतने ही संकेत से बहुत-कुछ समझ जायगा और उसे किसी व्यक्ति के दोष प्रकट करने के लिए बाध्य न करेगा।

लोगों को विदाई देने के लिए जो सभायें की जाती हैं उनमें केवल गुण-गान ही किया जाता है। कोई-कोई स्पष्ट-वक्ता ऐसे अवसर पर भी कभी-कभी दोषों का कुछ संकेत कर देते हैं, पर ऐसा संकेत केवल इसीलिये किया जावे कि उससे प्रशंसित सज्जन का आगे कुछ लाभ हो। यदि सार्वजनिक सभाओ में किसी सज्जन की सार्वजनिक कार्यवाही की आलोचना करना हो तो उसमें गुणों और दोषों का उचित मिश्रण अनुचित नहीं समझा जाता।

मृत-पुरुषो की निंदा करना अत्यन्त निन्दनीय है, क्योंकि जिस पुरुष की निंदा की जाती है यह उसका उत्तर देने को आ ही नहीं सकता। ययार्थ में मृत पुरुष की निन्दा करने वाले व्यक्ति को पूरा कायर कहना चाहिये, क्योकि जिस स्वतंत्रता से यह मरे मनुष्य की बुराई कर सकता है उस प्रकार वह उसके जीवन-काल में निन्दा न कर सकता। नित स्वर्गवासी सज्जनो के लिए शोक-सभायें की जाती है, उनमें उनके केवल-गुण-गान की आवश्यकता है और उसी से सभा के संचालकों की उदारता प्रकट हो सकती है तथा उपस्थित जनता को संतोष एवं उपदेश प्राप्त हो सकता है। शोक-सभाओ के प्रस्ताओ की नकल मृत-पुरुष के किसी मुख्य-संबंधी के पास अवश्य भेजी जावे। सार्वजनिक कार्य-कर्ताओ और प्रसिद्ध

हि० शि०—६