पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१५३

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और वह शिवाजी को बादशाही के बड़े बड़े सरदानों में जगह न दी गई। वह छोटे राजाओं के बीच में खड़ा किया गया और उसकी प्रतिष्ठा बहुत छोटे राजा की सी की गई। ७-शिवाजी अपने को किसी राजपूत राजा था मुद्दाल स्वरदार से कम न समझता था। उसकी आँखें कोच से लाल हो गई उसके मुंह से बात न निकलती थी, वरती पर गिर पड़ा। जब वह संभला तो उस ने सब से पुकार के कहा कि मुझे धोखा दिया गया और मैं अपनी ऐसी प्रतिष्ठा सह नहीं सकता। बादशाह उस को हुक्म दिया कि दरबार से चले जाओ और जब तक न बुलावें तब तक न आना। शिवाजी दरबार से ऐसा ही अकड़ता हुआ चला गया मानो यह न बाइशाह को कुछ समझता था न दरबार के सरदारों को * ८-बादशाह ने यह चरित्र देखा पर कुछ न बोला जो लोग वहाँ खड़े थे सब महरठा राजा की ढिठाई पर अचरज करने लगे और समझे कि शिवाजी यहीं मार डाला जायगा। उस समय के एक लेखक ने लिखा है कि औरङ्गजेब की सुन्दरी कन्या अन्य बेगमों के साथ बरामदे

  • सबन के ऊपर ही टाढा रहन जोग जाहि

ताहि खड़ो कियो जाय जारिन के नियरे। जानि गरमिसिल शुशीले गुमा धरि मन कीन्हीं ना सलाम न बचन बोले सियरे ॥ भूषणा ।