पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१५७

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(१४६) पहुचा दिये गये। वह आगरा नगर के बाहर एक वन में पहुँचे जहाँ रामसिंह ने उन के लिये घोड़े खड़े कर दिये थे। दोनों बाप बेटे रातों रात चलकर एक दुर के शहर में पहुंचे। यहाँ शिवाजी ने अपनी दाढ़ी मोंछ मुड़ा डाली और अपने और अपने बेटे के चहरों पर राख मल कर दोनों संन्यासी बन गये। जो सेवक उसके साथ थे उन्हों ने भी वैसा ही किया। उन के पास हीरा मोती और अशर्फियां छड़ियों में भरी थीं! एक बड़ा हीरा और एक माणिक्य जिन का दाम एक एक लाख रुपया था मोम में लपेट कर शिवाजी अपनी छड़ी में लिये हुए था। एक जगह उसे फौजदार ने पकड़ लिया, शिवाजी ने उसे हीरा और माणिषय धूस देकर उससे छुटकारा पाया।

७-दूसरे दिन पहरेवालों के पास एक दूत ने आकर

कहा कि मैं ने शिवाजी को वन में देखा है। एक पहरेवाला घर के भीतर चला गया और तुरन्त आकर बोला कि तुम झूठ बोलते हो शिवाजी सो रहे हैं। दो तीन घण्टे पीछे एक दूत और आया और बोला कि मैं ने शिवाजी को सड़क पर घोड़े पर सवार जाते देखा है। दूसरा पहरेदार भीतर गया और बड़े ध्यान से देख कर लौट आया और अपने अफ़सर से बोला कि मैं ने शिवाजी का हाथ और उस की अंगूठी बड़े ध्यान से देखी है। हीराजी ने अब समझ लिया कि जाग जाना चाहिये, स्वामी तो बच्च कर निकल गये। उस ने अपने