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मुदर्रिस यही कहते थे कि यह किसी अर्थ काम होगा। ऐसा असागा लड़का कभी स्कूल में नहीं आया। निदान उसने स्कूल छोड़ा और घर चला आया। उसका बाप जो एक अच्छे कुल का था बहुत ऋणी था। यही कहा करता था कि मैं इस वावी को क्या करू अच्छा होता जो इसका नाम खुबी होता कयोंकि यह निरत गदहा है और इसका मस्तिष्क बुद्धि से रहित है। उस के एक मित्र ने सलाह दिया कि इस को हिन्दुस्थान भेज हो और अपना पीछा छुड़ाओ। उस के बाप ने यह सलाह अच्छा समझा और लड़के से छुटकारा पाने के निमिस उसे ईस्ट इण्डिया कम्पनी में बाबू की जगह दिलवा दी और वह हिन्दुस्थान भेज दिया गया।

 ३.-उन दिनों जहाज़ से यहाँ आने में साल भर लगता था

क्योंकि तब तेज चलनेवाले स्टीमर नहीं थे। बारह महीने में राबर्ट क्लाइच मद्रास पहुंचा। उस समय वह उन्नीस बरस का था और उस की कोई पूछ आछ करनेवाला नहीं था। कम्पनी के दफ्तर मैं उस को मुहर्रिर की जगह मिल गई। वहाँ पर वह दिन भर बैठे बैठे चिट्ठियाँ लिखा करता था। आये हुए माल की फ़िहरिस्ते तैयार करता। मला यह काम उसको कब भाता। मद्रास की गर्मी और बैठे बैठे काम करने से वाह बीमार पड़ गया; उस ने घर को लिखा कि जब से मैंने विलायत छोड़ा एक दिन भी सुख से नहीं बिताया। वह इतना घबरा गया था कि उसको जीने की