पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/८३

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नाके साथ दक्षिण मेज दिया और यह कह दिया कि छोटी राजकुमारी को लिये विना न लौटना। ५. उस समय हेवल देवी पन्द्रह बरस की हो गई थी। एक दिन इस दुढ़िया से उसके हाथ की रेहा लेख रहा था "तुम्हारे हाथ की रेखा से यह जाना जाता है कि तुम्हारे जीवन का ताना दुर देश के बानेले दुना जायगा। देवल की समझ में कुछ बाथा पर कोई असर भी नहीं सकता था। ६-थोड़े दिनों में शापुर, बक्षिण पहुंचा। उसने र राय से सहला भेजा कि वैवल देवी को उसकी माँ दिल्ली की मलका ने बुलाया है। जो यह न भेजी जायगी तो जो कुछ बचा खुला राज है थाह भी दिल्ली का बादशाह छीन लेगा। करन राय ने उत्तर दिया “तुम मुझे चाहे मार डालो। मैं अपनी लड़को किसी और को दूंगा न कि उन लोगों को कि जिन्हों ने मेरी रानी चुरायी है। तुम लोग देवल देवी को चाहते हो तो मेरो लोथ पर से उसे ले जाओ।" देवगिरि के एक महरठा राजा रामदेव ने पहिले ही अपने लड़के शङ्करदेव का व्याह देवल देवी के साथ करने को करन राय से कहा था। पहिले तो राजपूत राजा ने उसकी न मानी क्योंकि वह उससे भी था पर जब उसने देखा कि दिल्ली का बादशाह देवल देवी को वरजोरी से ले जानेवाला है तब उसने रामदेव की बात मान ली। देवल देवी ने