और फ़ौज के सुस्ता लेने के ख़याल से काठियावाड़ के इलाके़ में ठहर गया; लेकिन काठियावाड़ के राजा विशालदेव ने रसद देने से इन्कार किया और शाही फ़ौज को अपनी सहर्द से बाहर चले जाने का हुक्म दिया; मगर ग़ुलाम ने उसके कहने पर कुछ भी अमल न किया और उसके इलाक़े को लूटकर फ़ौजी सिपाहियों का काम चलाया। अब इस नीयत से ग़ुलाम अभी तक यहां ठहरा हुआ है कि विशालदेव को उसकी इस सर्कशी की सज़ा ज़रूर दी जानी चाहिए। उसकी रानी, जिस का नाम कमलादेवी है, निहायत हसीन और नौजवान औरत है। उसके हुस्न की तारीफ़ मैंने यहांके हर ख़ासोआम के मुंह सुनी है और उम्मीद कामिल है कि उसे पाकर हुज़ूर पद्मिनी रानी के गम को बिल्कुल भूल जायंगे; आगे जो इर्शाद, बंदेनेवाज।"
अ़लाउद्दीन उस ख़त के सुनते ही फड़क उठा और उसने उसी समय अपने हाथ से फ़तहख़ा को यह हुक्म लिख भेजा कि,-"अगर विशालदेव अपनी रानी को बिला उज्र देखके तो उससे बगैर छेड़छाड़ किए, उस औरत को बाइज्ज़त अपने साथ लेकर तुम लौट आओ; बर न जिस तरह होसके,