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पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/१५

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कि,-'वही बालिका जल्दी जल्दी पैर बढ़ाती हुई चली जा रही है।' यह देख, युवक और तेजी के साथ आगे बढ़ने लगा और बात की बात में बालिका के बराबर पहुंच गया। अपने पास एक अनजाने मनुष्य को आया हुआ देख, एक बेर तो वह बालिका घबरा उठी,पर जब उसने भली भांति उस व्यक्ति को सिर से पैर तलक निहारा तो चट उसके मन का भाव बदल गया और डर जाता रहा। फिर उसने कुछ मुस्कुराहट और कुछ उदासी मिले हुए भाव को झलका कर युवा की ओर निहारते निहारते कहा,-

"ऐं! आज मैं यह क्या देख रही हूं! इतने दिनों पीछे, इस समय आप कहांसे यहां आ पहुंचे? हाय! हमलोगों को तो आप ने ऐसा भुला दिया कि मानो कभी की जान पहिचान हो नहीं थी। खैर, यह बतलाइए कि आप कब आए? इतने दिनों तक आप थे कहां? मुझे तो अब आप बिल्कुल भूलही गए होंगे? क्यों! जान पड़ता है कि अब आप---"

इससे आगे बालिका से और कुछ न कहा गया, क्यों कि लज्जा से उसका गला रुध गया था, चेहरा लाल हो आया था, आंखे नीची होगई थीं और कलेजा धड़कने लग गया था। उसकी ऐसी दशा देख युवा ने एक ठंढी सांस भरी और मीठेपन के साथ कहा,-

“ऐं! तुम्हारे मुंह से आज कैसी बात निकल रही है! भला, ऐसा तुम्हें विश्वास है कि मैं प्राण रहते, कभी तुम्हें भूल सकूंगा? क्या एकाएक यहांसे मेरे चले जाने का समाचार तुम्हें किसीने नहीं दिया और क्या अब कोई व्यक्ति तुम्हारी टोपी नहीं बिकवाता?"

बालिका ने आंखों में आंसू भर कर कहा,-

"नहीं, नहीं, कोई भी नहीं। क्यों कि अब इस संसार में सिवा आपके हमलोगों की सुध लेनेवाला दूसरा कौन है, जो आपका शुभ संबाद हमलोगों को देता या टोपियां बिकवाता। बरस दिन से ऊपर हुआ, जिस दिन आप, हमलोगों से बिना कहे सुने, एकाएक गायब हो गए थे, उस दिन पीछे बस आज ही आप के दर्शन हुए। खैर, यह तो बतलाइए कि इतने दिनों तक आप कहाँ थे और यहां कब आए?"

बालिका की सरलता से भरी हुई बातें सुनकर युवा के मन में