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पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/१९

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अभी नहीं बतला सकते, पर इतना अवश्य कह सकते हैं कि कुसुम-कुमारी कमलादेवी की लड़की थी, किन्तु बीरेन्द्र ने कमला को किस कारण से 'माता' कहा था, यह बात भी अभी नहीं खोली जासकती।

चौथा परिच्छेद

प्रकृत पालन।

"दरिद्रान् भर कौन्तेय मा प्रयच्छेश्वरे धनम्।"

जिस दिन हाथी को मार कर बीरेन्द्र ने कुसुम की जान बचाई थी उस घटना के दो बरस पहिले एक दिन सांझ के समय कुसुम को किसी मेले में फूल की माला बेंचती हुई बीरेन्द्र ने देखा था। मेघ की ओट में भी क्या कभी चन्द्रमा का स्वाभाविक सौन्दर्य छिप सकता है! वैसे ही दरिद्रता की चरम दशा को पहुंची हुई और मोटी साड़ी पर मैली चादर ओढ़े हुई भी कुसुम का स्वर्गीय सौन्दर्य उसके मुखड़े से टपका पड़ता था; इस लिये देखते ही बीरेन्द्र ने मन ही मन इस बात का निश्चय कर लिया था कि,-" अवश्य यह लड़की किसी अच्छे घराने की होगी, पर समय के फेर ने इसे ऐसा करने के लिये बाध्य किया होगा!"

निदान, फिर तो बीरेन्द्र ने कुसुम से सब मालाएं खरीद ली और बातों ही बातों उससे उसका सारा हाल भी जान लिया। जिस समय का हाल हम लिख रहे हैं, उस समय कमला की मामी बिमला मर चुकी थीं। यह बात हम लिख आए हैं कि बिमला कीशा अच्छी नहीं थी और कृष्णनगर से भागने के समय कमलादेवी अपनी बेटी कुसुम और चम्पा दासी के अलावे और कुछ भी साथ नहीं लासको थीं। तो ऐसी अवस्था में उन विचारियों का दिन कैसे कष्ट से बीतता होगा, इसका हाल वेही जान सकते हैं जिन्होंने लगा तार दुःख के झपट्ट झेले हों और अपनी इज्जत आबरू न खोकर भली भांति दुर्दिन का सामना किया हो! बिमला के जीते