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परिच्छेद)
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आदर्शरमणी।



अपने कलेजे पर पत्थर रखकर बीरेन्द्र ने चम्पा की सहायता से कमलादेवी को लाकर आंगन में कुश की चटाई पर डाल दिया और उनके मुख में तुलसी, सोना और श्रीठाकुरजी का चरणोदक दे, कान के पास मुंह लगाकर हरिनाम सुनाना प्रारंभ किया। थोडीही देर में कमलादेवी कुसुम तथा बीरेन्द्र की ओर देखते देखते सतीलोक को चलदीं।

उस समय बीरेन्द्र, कुसुम और चम्पा की क्या अवस्था हुई और उन सभोंने कैसा घोर बिलाप किया, भुक्तभोगी जन इसका अनुभव स्वयं कर सकते हैं। थोड़ी देर में बीरेन्द्र ने अपने तई आप सम्हाला और बज़ सा कलेजा करके बहुत कुछ समझा बुझाकर कुसुम और चम्पा को कुछ-कुछ शान्त किया। तड़का होगया था, इतनेही में पच्चीस तीस आदमी कुसुम के दर्वाजे पर आखड़े हुए। ये सब बीरेन्द्र के नौकर चाकर थे, जिन्हें वे बुलाते आए थे, जब कि वे कविराज के बुलाने के लिये गए थे।

निदान, शवयात्रा की तयारी होने लगी और कई आदमियों को कुसुम तथा चम्पा की हिफ़ाज़त के लिये छोड़, बीरेन्द्र ने स्वयं जाकर कमलादेवी के शव का संस्कार किया।

अब बीरेन्द्र के सिवा कुसुम को धीरज देनेवाला संसार में और कोई न रहा, इसलिये वे कुसुम और चम्पा को अपने डेरे पर लेगए और हर तरह से कुसुम को धीरज देने और उसके शोक को शान्त करने का प्रयत्न करने लगे। यह बहुत अच्छा हुआ कि बीरेन्द्र बहुत जल्द कुसुम को अपने डेरे पर लेगए, क्यों कि जिस दिन वे कुसुम को उसके घर से अपने डेरे पर ले गए, उसी रात को नवाब के आदमी कुसुम को पकड़ ले जाने के लिए उसके घर में घुस आए थे, पर उन कंबरवों को अपना सा मुंह लेकर खाली हाथों वापस चले जाना पड़ा।

नवाब सिराजुद्दौला को किसी तरह यह मालूम हो गया था कि,-'उल मतवाले हाथी को किसने मारा है और हाथी को मार कर जिस श़ख्स ने उस लड़की की जान बचाई है, वह उस लड़की के साथ क्या ताल्लुक रखता है और वह लड़की कहांपर रहती है।' इसी ख़बर को पाकर उस दुष्ट ने कुसुम और उसके रक्षक के पकड़ने के लिये आदमी भेजे थे, पर उन सभोंको खाली हाथ ही