पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अठारहवाँ परिच्छेद कहकर शारदा फूट-फूट कर रोने लगी। सरला ने सिर उठाकर कहा--"मा, मृत्यु अच्छी है, तो वह कहाँ मिलती है ?" "विधाता देता है, तो सब जगह मिल जाती है। नहीं तो सर्प का मुख, अतल-पाताल, सिंह की माँद, कहीं भी नहीं मिलती।" "कहीं भी नहीं मिलती?" "मिलती, तो यह दुःख न सहती। इस आग में जलते. जलते एक-दो दिन नहीं, पूरे अट्ठाईस वर्ष हो गए हैं। ईश्वर से भी प्रार्थना करने का यही फल हुआ कि मेरी बेटी को ही इस उम्र में यह वेदना !" शारदा को रोते देखकर सरला की भी आँखों में आँसू आ गए । शारदा ने देखा, उसका मुख वैसा भयानक नहीं है। उसने उठाकर सरला को गोद में बिठा लिया। सरला मा की छाती से लिपटकर सिसक-सिसककर रोने लगी। इसी समय सुदर बाब ने औषध लेकर कमरे में प्रवेश किया । देखा. सरला रो रही है। यह देखकर उन्हें कुछ ढाढ़स हो गया। उन्हें देख दोनो अलग-अलग हो गई । सरला मानो नींद से चौंक उठो । वह तमककर खाट पर पड़ रही। सुदर बाबू बोले-"सरला, यह औषध खा लो।" "औषध ! किस बात की औषध ? क्यों मा, कैसी औषध ?"