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हृदय की परख

इनकार करते । सब-के-सब दालान में आए | योग्य आसन पर बैठने पर सरला ने अत्यंत मधुर भाव से पूछा- "माननीया देवी, आप कौन हैं, और इस झोपड़ी को पवित्र करने की कृपा क्यों हुई है ? क्या आदेश है, आज्ञा कीजिए।"

रमणी अभी तक निनिमेष दृष्टि से सरला का मुख ताक रही थी। उसने आर्द्रभाव से कहा- “सरला, मुझे तुझे ही अपना परिचय देना होगा ?"

सरला डर गई। शायद उससे कुछ असभ्यता हो गई हो। उसने हाथ जोड़कर पूछा-"क्षमा करो दयामयी, अनजान में अपराध हो गया हो तो। हम गाँव के लोगों को वैसी बातचीत की सभ्यता नहीं आती।"

रमणी से न रहा गया। उसने सरला के दोनो हाथ पकड़कर उसे अपनी गोद में खींच लिया और कहा-'बेटी, यही अभागिनी तेरी माँ है " सरला चौंक पड़ी। धीरे से उसने उसके बाहु-पाश से अपने को बाहर निकाला, और वह एकटक उसके मुख की ओर देखने लगी। कुछ देर ठहरकर उसने पूछा- "मेरी माँ "

"हाँ सरला ।"

"नहीं देवी, ऐसी बात क्यों कहती हो? आप राजरानी हैं। आपकी लड़की इस जंगल के झोपड़े में क्यों आने लगी ! इस अभागिनी ने तो अपनी माँ को आज तक एक बार भी नहीं देखा। इसकी माँ संसार में होती, तो क्या