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हृदय की परख

"कुछ चाहिए?"

"नहीं।"

"तो बात क्या है, कुछ साफ़-साफ़ तो कह!"

सरला कुछ देर चुप रही। कुछ कहना चाहा, पर कह न सकी, उसकी गर्दन झुक गई।

शारदा ने समझा, कोई बात है, पर कही नहीं जाती। वह चुपचाप सरला की ओर देखती रही।

सरला ने फिर कुछ कहने को सिर उठाया, पर जब देखा कि शारदा मेरी ही ओर देख रही है, तो उसने लजाकर फिर सिर झुका लिया।

शारदा ने प्यार से उसका हाथ पकड़कर कहा―"ऐसी कौन-सी बात है बेटा, जो मुझसे कहने में लाज लगती है। कोई और होती, तो मैं कुछ और ही समझती। पर मेरी सरला का हृदय मुझसे छिपा नहीं है। वह चाँदी-सा स्वच्छ है। ऐसे विशाल उद्देश्य, ऐसी महानुभावता कहीं मिल सकती है? जिस हृदय को स्पर्श करके मेरी घोर अतृप्त आत्मा को परम शांति हुई है, वह संसार के प्रलोभनों में फँसेगा? यह संभव है? जहाँ स्वर्ग के पारिजात खिल रहे हैं, जहाँ प्रेम करने में मन भय, लज्जा और तृष्णा से परे है, यह संसार जिसका कीड़ा-क्षेत्र है, उसके संबंध में वैसी आशंका भूल ही नहीं, अपराध भी है।"

शारदा इतना कहकर चुप हो गई। उसकी वक्तृता सुन-