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हृदय की परख

शशिकला ने अत्यंत निराश-भाव से उसको देखकर कहा―"सरला बेटा! एक बार मा न कहेगी?"

सरला का सरल भाव फिर लोप हो गया। वही तेज, वही गंभीरता मुख पर फिर आ विराजी। आँसू भी एकदम सूख गए। उसने कुछ सिर झुकाकर कहा―"आज्ञा दें, जाती हूँ।"

शशिकला के भी आँसू सूख गए। उसने खड़े होकर टूटे दिल से कहा―"जा, इस घर से तेरा जाना ही ठीक है। पवित्रता की ऐसी मूर्ति के ठहरने योग्य यह घर नहीं है। जा, जीवन में एक बार तू आ गई। यही बहुत है। मैं कृतार्थ हो गई।"

सरला चुपचाप चल दी। शारदा भी पीछे-पीछे चली। एक बार सुंदरलाल सरला को समझाने के लिये आगे बढ़े, पर उसका मुख देखकर उन्हें साहस ही नहीं हुआ। सरला गाड़ी में बैठ गई। उसने शारदा से कहा―"मा! जल्द आइयो।" सरला चली गई।