पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/११७

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। अध्याय ७ वॉ] [गुप्त संगठन क्रातिकारी उत्थानोम राष्ट्रीय काव्यका महत्त्व अनमोल है। राष्ट्रीय गीत तो उज्ज्वल ध्येयसे छलकती राष्ट्रीय आत्मा का काव्यदेहम अनभव है। लोगोके हृदयोंको जोडनेका इससे बढकर प्रभावी साधन दूसरा नहीं है । स्वधर्मकी रक्षा तथा स्वराज्यकी प्राप्तिके लिए आवश्यक स्वाधीनताकी तीन आकाक्षासे जब भारतभूमि जागृत हो उठी, तब राष्ट्रीय अतःकरणसे राष्ट्रीय काव्य यदि फूट न निकलता तो बडे अचरजकी बात होती । दिल्ली के बादगाहके दरबारके एक प्रमुख शायरने एक राष्ट्रीय गीत बनाया था और बादगाहने स्वय सबको यह आदेश दिया था कि, "यह गीत हर सार्वजनीन सभा, ममाज, समारोहमें तथा हर देशवासीके कण्ठसे गाया जाय ।" इस गीतम इतिहासकालके वीरत्वपूर्ण कृत्यों तथा अबकी हीन दासताका वर्णन था। ठीक कलतक जिनके सिर को कर्तमकत राजगक्तिका राजमुकुट शोमा दे रहा था, उन्हीको कुत्तेकी मौतमे मरनेकी बारी आयी थी। जिनका धर्म कलतक धर्मके सम्मानसे जीवित था, उसके गरीरसे राजसत्ताका मरक्षक कवच ही टूटपडनेसे वह लला हो गया है ! कल जो सम्राट-पदपर बैठे थे वे आज विदेशी शत्रुओंके पैरोतले रौधे जा रहे है-इस तरहके कई विषयों की गूंज इस गष्ट्रीय गीतसे प्रतिध्वनित होती थी । (स. १४ देखो) ____ इस तरह जब यह राष्ट्रगीत लोगोंमें पूर्ववैभव को स्मरण करा कर वर्तमान की दारूण दगा को स्पष्ट कर रहा था, तभी, मानो, आगामी आगा का सितारा चमक उठे और प्रजामें फिरसे नया उत्साह पैदा हो जाय इस लिए देशभर में एक भविष्यबानी फैल रही थी। 'भविष्य की मन की उडाने ही भविष्य-कथन होती है । हिंदुस्थान का अंतःकरण स्वराज्य के लिए बैचेन होने लगा तब इन भविष्योमें भी स्वराज्य का उल्लेख होने लगा। उत्तरम हिमालय से लेकर दक्षिणम रामेश्वर तक बडे बूढे, सभी एकही बात बोलने लगे-'सहस्रों वर्षोके पहले एक प्राचीन तपोधन मुनिने यह भविष्य कथन किया है कि राज्यस्थापनासे ठीक सौ बरसो के.बाट फिरगी राजसत्ता का अंत होनेवाला है। भारतीय समाचार पत्रोने इस भविष्यबानीको बहुत प्रसिद्धि देकर साथ यह भी सूचित किया था कि " कपनीका राज्य २३ जन १८५७ को अपने शासनेके सौ वर्ष पूरा करेगा। इम भविष्यगनीसे भारतमें कई अजीब बातें