पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१५०

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( १२६ ) तयार है दुआ सन्ताप छोट । आज तुम्हारी सब यन्त्रणा और दुःन दूर हो जायेगे। मैं तुम्हें अपनी गोद में स्थान दूगी, मम विना सहस्रों मर मारी मृत्यु का प्रास बन चुके हैं। भगवती गंगा अपने तीन प्रवाह से धंग देश की अन्नाहार विषजित प्रमा के मृतघत शरीरों को गंगा सागर की भोर पहा के लिये जा रहा है। छाती से बच्चों को लगाये सैकटों 'स्त्रियाँ गंगा पार अचेत अवस्था में पड़ी है। किन्तु पापी 'माण भय मो शरीर का मोह छोड़ बाहर नहीं निकलते। जा मुर्दो को टांग पफर गंगा की घोर उन्हें घसीट ले जाते ओर गंगा में उन्हें फेंक रहे हैं। यह देखो १०५ भादमी (हिसाहित शून्य हो पृक्षों के पत्तों को खा रहे हैं। गंगा किमारे के वृक्षों पर नाम को पत्त नहीं रह गये हैं। - "मलकत्ता मगर के भोवर पफ मुट्ठी नाज के लिये दुर्मिक्ष पीड़ित रमणो गोद में बालकों को पेचमे के लिये घर उभर राम रहा है इस मोर दुमित ने माता के हृदय को स्नेह शून्य कर दिया है। नर नारी पंथाचिक प्रवृति के हो गये हैं। पाउौ के हृदय को हिलाने के लिये यह वर्णम फाफो है। रोप में हमें इतना ही कहना है कि इस वर्ष इस अकाल में १ करोड़ वंगालो भूखो मर गये थे। परन्तु कलकत्ते के गवर्नर काररियर साहेब मे इस प्रकाल की सूचमा कोर्ट श्राफ नगा- 4 U