पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/३०८

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( २६१ ) है सोग का मर्च लास २७ हजार दो सौ पचीस पौपर पार्पिक है- लाख २० भारत को भी देने पड़ते हैं, जिस के बदले यह अपना ऐसा प्रतिनिधिभेज सकता है। जिसे सुनमे का स्वयं अधिकार नहीं। लीग को स्थापना वास्तव में एशिया से भयभीत होने पर यूरोप के राष्ट्रों का गुहहै जिस मे एशिया से केवल जापान दी सम्मिलित है. पर भाषो युद्ध कर टूट पड़े इस की कल्पना करो नहीं जा सकसो। पिछले दिनों जनरल पर्ट उसने मा भारत की सेनाओं के प्रधान अध्यक्ष है गोरों के सामने गोर मपुर में जो भाषण दिया या उस का सार यह था- "अन्तिम लड़ाई तो अभी लानी ही है और जहाँ हम लोग शान्ति के लिये उदय से बेटा कर रहे हैं यहा हमें प्रमी युग के लिये क्यारियां करनी होगी। क्व और कहाँ वह पुर छि रेगा कोई नहीं फट सकता। पर यह मैं विश्वास पूर्षक फहरहा कि तुम गोर्या लोग हमारे मित्र की हैसियत से फिर सड़ने के लिये तैयार रहोगे और अधिकारों के लिये सरोगे।" इसी कपन के साथ ही बरस मारतीय सेनामों के जनरल स्टाफ अध्यक्ष लेफटनेण्ट जेनरल सर ऐएर स्कीन की ओर से पाएँ विशाओं के कमाए केरकारों के नाम निफामे हुए सूयमा पत्र (मेमोरणहम) कीबातों की बैठाते हैं तबतो भावी महायुग