पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/४

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एक बात सन् १९२१ का महायोग आया और चला गया, भारत के खुर्घप दुर्भाग्य ने उसे हमारे शामत होने से प्रथम हो मार भगाया। तब से अब तक का १० वर्षका समय हमने जागति, प्रारमबोध को चेष्टा में व्यतीत किया। प्रास्म पोध हमें हुमा, और भाज-जय सन् ३० का प्रथम प्रभात उदय हुआ, तो हम जाप्रत होकर सच्चे युषक की भौति अपनी उस सामूहिक ममिलाषा को धैर्य और धीरता से प्रकट कर सके जो हमारे परम प्रारम पलिदाम से प्रोत प्रोत है। सहस्रो घर्ष याद हमारी पास्मा में सन् २०के प्रथम क्षया में पद माव-तेज-त्याग और साह आया है, जो प्राचीन मार्य संस्कृति के लिये-महा मातियों के इस मध्य उत्थाम के युग में असाधारण है। यदि इस पण को भाषमा के ऊपर चल कर हमारा सर्व नाश भी हो तो भी हम पृथ्वी की समस्त जातियों में अपने को महा भाग्य शाही सममेंगे। दिशी। १५।२।३० श्रीचतुरसेन शास्त्री। 1