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सैकड़ों, हज़ारों तालाब
अचानक शून्य से
प्रकट नहीं हुए थे।
इनके पीछे एक इकाई थी
बनवाने वालों की, तो
दहाई थी बनाने वालों की।
यह इकाई, दहाई मिलकर
सैकड़ा, हज़ार बनती थी।
पिछले दो सौ बरसों में
नए किस्म की
थोड़ी सी पढ़ाई पढ़ गए
समाज ने इस इकाई,
दहाई, सैकड़ा, हज़ार को
शून्य ही बना दिया।