इव्न सउद और मुफ़्ती आज़म (Grand Mufti) के नाम भी पेश किए गए। परन्तु सत्य तो यह है कि आदिकालीन ख़लीफ़ो के समय से आज तक कोई संयुक्त पान-इस्लामी साम्राज्य नही रहा, और आज भी जातीय, भौगोलिक तथा आर्थिक मतभेद अखिल-इस्लामी साम्राज्य की स्थापना में बाधक है। परन्तु अब इस्लामी जनता के स्वातंत्र्य-युद्ध में अखिल इस्लामवाद को एक आध्यात्मिक अस्त्र की तरह काम में लाया जा रहा हे। सन् १९३८ में मिस्र और शाम (सीरिया) में जो मुस्लिम सम्मेलन हुए उनका फिलिस्तीन की समस्या पर, अरबो के पक्ष में, अच्छा प्रभाव पड़ा। सन् १९३४ में सादावाद के समझौते के अनुसार यह निश्चय हुआ कि तुर्की, ईरान, ईराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में परस्पर राजनीतिक सहकारिता स्थापित की जायेगी। उसी प्रकार सऊदी अरब की मिस्र और ईराक़ के साथ जो सधियाॅ हुई है, उनमें "इस्लामी सद्भावना" का उल्लेख किया गया है।
अखिल जर्मनवाद——इस आन्दोलन का उद्देश्य समस्त जर्मन भाषा-भाषियों को एक ही राज्य के अन्तर्गत संगठित करना है। सन् १९१४-१८ विश्व-युद्ध से पूर्व जर्मनी में इस आन्दोलन का संचालन 'हर' श्रेणी के लोगों ने किया था। पहले इसका उद्देश्य आस्ट्रिया के जर्मन-भाषी प्रान्तों को जर्मनी में मिलाना था। आस्ट्रिया में अखिल जर्मनवाद अर्थात् पान-जर्मनिज़्म का ज़ोरदार प्रचार था। हर हिटलर का जन्म इसी वातावरण में हुआ और उस पर इस आन्दोलन का बड़ा प्रभाव पड़ा। अखिल-जर्मनवादी वित्मार्क की पूजा करते थे, परन्तु उसने आस्ट्रिया की सुरक्षा का समर्थन किया। हिटलर ने आस्ट्रिया ओर सूडेटनलैण्ड को जर्मनी मे मिलाकर इस आन्दोलन के लक्ष्य की पूर्ति की। पश्चिम मे अखिल जर्मनवाद का लक्ष्य अलनेस लोरेन लक्जमबर्ग तथा जर्मन-भाषी स्विट्जरलैंड को जर्मनी मे मिलाना रहा है। उग्र जर्मनवादी तो यहँ तक चाहते है कि हालैएट ओर फ्लेंण्टर्स को भी जर्मनी में मिलाया जाय।
अखिल यूरोपवाद——बियना नगर ने माउट निकोलस तथा काउन कालरेगी ने सन् १९२६ मे आन्दोलन शुरु किया। अखिल यूरोपीय