पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/३७

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॥२१॥ कंदरपकेत चन्त्रि। कांचनपुर नगर में बीर बिक्रमां हीत राजा स्ले तिल नांग्या पाइ एक नाउ को मावि के ठोर ले चले। माम संन्यासि ओर एक साध सहित इह येक बात नाउ मावि लाइक नाहि ईह कहि नाउ को बस्त्र प के सेवकनि कलि। इह काहे ते मारिखे लाईक नादि कलित है। स्वर्गलेषा को छूना करि संन्यासि दुर्ग आपने ली दोष ते दुषी भये। तब राजा के सेवक टुषी भये। संन्यासी कहतु है। सिंघलदीप को राजा ज ता के पुत्र कंदपकतु लम है सु एक दिन क्रिडा के ब ताहां पेल्ल के ब्योपारी बाग मे आइ उतरे तिन के मे सुनी जुईल इहि समुद्र में अंधियारी चोदसि के प्रगट होत है वा के ले मणिन्ह की किरण करि प्रका समसत अाभरण पहेरि लिषिमी समान बेण बजावा न्या देषियत है। ता वें यह बात में सुनी सुनिकरि । कैसे हूं देषि जाई। तब वे ब्योपारि समुद्र के पार व्योपर को चल्यो। तब हुँ उन बनिया के साथि बो जात जात उस ही ठौर गये उहां जाइ करि कन्या देखि णी मांहि अाधी उपरि वा की सुंदरताई देषि बोइथ लेन को ढूं समुद्र में पेव्यो। भागे सोने के नगर मे ज । के घर मे सेज परि बैठि मे देषि उन्ह हौं देष्यो दे