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॥६॥ गांव देस नाना भोग है। चाहे एक राम जा कों जपे बाठो जाम और याम सौं न काम जा में भरे कोटि रोग है। बाये घर जीति साधु मिले करि प्रोति जिन्ले लरि की प्रतीति वेई गायवे को जोग है। होयके पिसाने द्विज निज च्यारि विपनि को मूंउनि मूंडाय भेष सुंदर बनायो है। टूरि टूरि गावनि में नामनि को पूछि पूछि नाव ले कबीर जू को झूठे न्योति आये है। प्राये सब साधु सुनि ए तो टूरि गये कद्रं चढूं दिसि संतनि के फिरे हरि धाये है। इन ही को रूप धरि न्यारी न्यारी ठोर बैठे एउ मिलि गए नीके पोषिके रिझाये है। आई अप्सरा छलिवे कों लिये वेस किवें लिये देषि गाउ फिरि गई नही लागी है। चत्रभुज रूप प्रभु श्रामिके प्रगट कियो फल नैननि को बडो बउ भागी है। सीस घखो हाथ तन साथ मेरे धाम श्रावो गावो गुन रहो मोलों तेरी मति मागी है। मग मे जाय भक्ति भाव को दिषाय बळु फूलनि मगाय पोठि मिले हरि रागी है।