पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१७२

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यध्धपि यह सच है की अतर्ववेदा संहिताकी उपलब्ध प्रति ऋग्वेदा संहिताके वादकी हैं किन्तु इससे यह प्रकट नहीं होता की इस संहिता के सव सुत्क ऋग्वेद सुटकोंके बाद के हैं | केवल इतना ही कहा जा सकता है की अथर्ववेद के सबसे अंतिम सुत्क ऋग्वेद के सबसे अंतिम सुतकोंके पश्चात रचे गए हैं | जिस तरह अथर्वावेदके बहुत से सुत्क अधिकांश ऋग्वेद सुतकों के बाद के हैं उसी तरह यह भी निश्चित है की अथर्ववेद की अभिचार ऋचाएं ऋग्वेदा की यश सम्बन्धी ऋचाओं से पुरानी भले ही न हो, पर एक ही समयकी अवश्य है | अथर्ववेद के बहुत से सुत्क ऋग्वेदा के पुराने से पुराने सुतकोंकी तरह प्राचीन और उसी अज्ञात प्राक् इतिहास काल के हैं | अथर्वावेदकाल कोई निश्चित काल नहीं है| ऋग्वेद संहिताकी तरह अथर्ववेद के कुछ सुतकोंके रचना काल में कई शताब्दियों का अंतर है| इसीलिए अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि अथर्ववेद के अंतिम सुतकों की रचना ऋग्वेद सुतकों के आधार पर हुई है|डॉ. शेल्डोवर्ग का मत है की - भारतवर्ष के अथर्ववेद के अति प्राचीन अभिचार गद्यमय थे और पद्यात्मक ऋचा और सुतकोंकी रचना ऋग्वेद के यशसंबंधी सुतकों के आधार पर हुई है | पर डॉ. विटरनिट्ज इसे गलत कहते हैं | ऋग्वेद के विषय और कल्पनाएं अथर्ववेद से एक दम भिन्न है | ऋग्वेद की और अथर्ववेदा की रचना भिन्न है | एक में (ऋग्वेद) एचमहाभूतातक्मक बड़े बड़े देवता हैं | गायक उनकी स्तुति और प्रसन्नसा करते हैं | उनकी प्रसन्नता के लिए यज्ञं करते हैं | देवता बहुत बलवान हैं विपत्तिके समय दौड़कर सहायता करने वाले हैं, उदारचितवाले हैं और अधिकतर आनंद और प्रकाश देने वाले हैं | (अथर्ववेद) दूसरे में मनुष्य जाती को आपत्ति में फंसने वाली शक्तियों और भय पैदा करने वाले पिसाच (भूतप्रेत) आदि पर उग्र मंत्र छोड़ने वाले या उनकी मिथ्या प्रसन्नसा करके उनको शांत करनेवाले मांत्रिक दिखाई देते हैं | इस वेद में वणींत बहुत से सुतकों और उनके प्रयोगकी विधियां उन कल्पनाओ की कंग्यमें आती है जो कल्पनाएं पृथ्वी की एक दम भिन्न संस्कृत देखने वाले जातियों में प्रचलित हैं और उनमें एक विलक्षण शहास्यता दिखाई देती है | उत्तर अमीरिका के पूर्व निवासी अफ्रीका के नीग्रो, मलाया के निवासी, मद्य एशिया के मंगोल पुराने ग्रीक और रोमन आदि लोगों की जारण-मारण सम्बन्धी कल्पनायें तथा मंत्र तंत्र और उनके विपय में अद्भुत विचार वाले पुराने हिन्दू लोगों के अथर्ववेद से मिलते जुलते हैं | इसलिए अथर्ववेद के बहुत से ऋचाओं के विपय अमेरिकन इंडियनों के वैद्य अथवा तातारी शमनों में और अति प्राचीन जर्मन काव्यवशेषों में मिलने वाले मार्सवर्ग मंत्रो से विपयों से बहुत कुछ मिलते जुलते हैं | मार्सवर्ग मंत्र संग्रह में एक मंत्र है | थोडन नामक मन्त्रिकने वल्डर्के के मोच खाए हुए पैरको निम्नलिखित मन्त्रों से ठीक कर दिया | " हड्डी के साथ हड्डी , रक्त के साथ रक्त, अवयषों के साथ अवयब मिलाने से एक जीव हो (परस्पर मिल ) जाए |" ठीक ऐसी ही अशयका एक मंत्र अर्थवेदा (४.१२ ) में पैर टूटने के इलाज के सम्बन्ध में है | सं ते मज्जा मज्जा अबतु समु ते परुषा परु: लं ते मालस्य विलास्तं समस्त्यापि रोहतु ||३|| मज्जा मज्जा सन्धियन्ता चर्मण चर्म रोहतु | अशृक ते अस्तित रोहतु मांस मांसेन रोहतु ||४|| लोभ लोमरा संकल्पया त्वचा संकल्पनया तवचम् अशृक ते श्रस्ति रोहतु छिन्न ||५|| तेरे शरीर के मज्जायों इन टूटी हुई मज्जाश्रों से और अवयब इन टूटी (भिन्न) अव्ययवांस जूड्ड जाएँ | शरीर का नष्ट हुआ मांस और टूटी हुई हड्डी फिर बढ़ जाए ||३|| मज्जा में मज्जा मिल जाए | फटा हुआ चमड़ा फिर जुड़ जाए तेरे शरीर का नष्ट हुआ रक्त और टूटी हुई हड्डी फिर पैदा हो और मांस बढे (आ जाए) ||४|| है बनस्पति, नष्ट (गायब) हुए केश (बाल) तेरे कारण आवें, चमड़ा जुड़ जाए, रक्त और हड्डी बढे , इस प्रकार घाव (जख्म) ठीक हो जाए ||५|| अथर्ववेद का विशेष महत्व बढ़ने वाले कारण निम्नलिखित हैं| यह यागादिक और तत्वज्ञान सम्बन्धी विचारों से दूर रह कर केवल भूत , प्रेत , रखशस आदि में विश्वास करने वाले मनुष्यों के कैसे कैसे पृथक पृथक मत हैं इसको जानने के लिए अथर्ववेद एक अमूल्य साधन है | अथर्ववेद के भिन्न भिन्न सूत्रों को ध्यान पूर्वक पढ़ने पर दिखाई देगा की मानस जाती के ज्ञानविकास के इतिहास को जानने की इच्छा रखनेवाले पंडितों को अथर्ववेद का ज्ञान प्राप्त करना कितना अवश्य है

      -- अथर्ववेद एक महतवपूर्ण विभाग उन मन्त्रोंका है जिनमें रोगों को दुर्र करने का उल्लेख है इन्हे भैषज्य सुत्क कहते हैं | रोगों का