पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

PPPM- Amrainwa- अधर्मसंतति ज्ञानकोश ( अ ) २०४ अधिक मांस में इसमें सुधार किया गया और वसीयतनामा अपनी अलग जाति बनाली है। ये अपनेको पारा- बनवानेका अधिकार अधर्म संततिको दिया गया। शर ब्राह्मण कहते हैं। मराठीमें तो श्रारंभमें अधर्म इंग्लैडमें प्रचलित कानूनोंके अनुसार पार्लियामेंट संतित अलगही रखी जाती हैं, परंतु समय पाकर अपने अधिकारके बलपर प्रस्ताव करा कर ऐसे जब ये परिवार सुशिक्षित धन सम्पन्नहा जात व्यक्तिको अधर्म संततिके बन्धनोसे मुक्त कर हैं तो कुलीन लोगभी उनसे विवाह संबंध स्थापित सकती है। जिन देशोमें उस संबंधके कानन रोमन करने लग जाते हैं। अर्थात् अधर्म संततिके प्रति कानूनोंके आधार पर बने हैं वहाँ अधर्म संतति थोडीसी उदारता केवल मराठोमेही दिखायी देती का वही दजो कायम नहीं रहता बल्कि ऐसी है। बंबई में कुछ अकरमासे मराठोकी हालत बहुत संतानके मां बाप विवाह कर लेते हैं तो ऐसी अच्छी है। वे असल मराठोंमें मिल जानेके लिये संतति भी औरस मानली जाती है। तयार नहीं हैं। वे अपनी जातिमही विवाह संबंध . भारतीय समाजमें अधर्म संततिका स्थान-हिन्दू कर लेते हैं। कई उदाहरण ऐसेभी मिलेगे जिनमें समाज जातिबद्ध है इसलिये अधर्म संततिको इनके विवाह संबंध उच्चवर्णीय ब्राह्मणोके यहाँ किसीभी जातिमें स्थान नहीं मिल सकता है। भी हुए हैं। ऐसी प्रजा अलगही रहती है और अपनी अलग अधर्म संततिके रास्तेमें जो अड़चने हैं वे जाति बना लेती है। ऐसी परिस्थिति होने की सामाजिक हैं। कानून कोई बाधा नहीं देता। वजहसे यह संभव है कि अधर्म संततिके कारण विषयमें तो कानन इनके अनुकूलही है । मान कुछ छोटी छोटी जातियाँ पैदा हो गयी हो। ऐसी लीजिये कि यदि कोई हिन्दू स्त्री किसी यूरोपियन जातियाँ कौन हैं यह आजही कह देना संभव नहीं | से विवाह करले तो उसकी संतानको हिंद नहीं है। धर्म शास्त्रीय ग्रंथों में जिन अनेक संकर जाति- अनक सकर जाति- कहेंगे। परंतु किसी हिन्दू स्त्रीका किसी यूरोपि- योका उल्लेख है उनमें मागध, सैरंध्र, चांडाल मागध, सरध्र, चांडाल यनके साथ अनुचित सम्बन्ध (विवाह सम्बन्ध आदि जातियाँ हैं। महाराष्ट्रमें गोवर्धन ब्राह्मणोंको नहीं ) हो जायतो उसकी संतति हिन्दू कहला- 'गोलक' मानते थे। "श्रमते जारजः कडः मते वेगी। बम्बईके 'अकरमासे' मराठीमें एक शाखा भर्तरि गोलकः उसी मनुस्मृतिके आधार पर वे ऐसीभी है। मलायलम जातिके तिप्पा लोगोंमें बहिष्कृत समझे जातेथे। परंतु हम समझते हैं कि भी ऐसी जाति पाई जाता है। भी ऐसी जाति पाई जाती हैं। आश्चर्यतो इसी यह जाति प्रदेशविशेषमें रहनेके कारण ऐसी कह बातका है कि यह वर्ग जाति तिप्पा जातिसे लाती होगी क्योंकि उनकी ज्योतिषी वृत्ति बहुत अलग नहीं मानी जाती। प्राचीन है। ब्राह्मण पुरुष और ब्राह्मण स्त्रीकी अधर्म अधिकमास--इसे मलमास अथवा पुरुषोत्तम संतति ध्यान न देनेसे ब्राह्मणोंमें मिलनेके कई मास भी कहते हैं। १२वर्ष बाद चैत, जेठ या श्रावण उदाहरण मालूम हैं। साथमें रहनेवाले परंतु रहनवाल परतु अधिक आ जाते हैं। १८ वर्ष बाद आषाढ़ अधिक अविवाहित स्त्री पुरुषोंसे होनेवाली संतति कोशिश होता है. २४ वर्षों में भाद्रपद, १४१ वर्षामे आश्विन करके विपत्तिमें पड़ेहुए लड़के लड़कियोंका और ७०० वर्षों में कार्तिक मास अधिक पाता है। विवाह संबंध करके अपने में मिलाकर अपने माता अाश्विन या कार्तिक ये दो महीने यद्यपि गणनास पिता ही की जातिमें घुस जाती है। विधवाएँ, मलमास होते हैं तो भी उसे अधिक मास नहीं जिन्हें ऐसी संतति हो जाती है, ऐसे बच्चोंका कुछ मानते। जिसवर्षमै आश्विन बढ़ता है उस वर्ष इंतजाम करदेती हैं। या तो वे बच्चोंको मार डालती पौषका क्षय माना जाता है। मार्गशीर्ष और हैं या किसी अनाथालयमें रख देती हैं या मिशन पौष दोनों महीनोंके धार्मिक कार्य एक ही मासमें रियोके सुपुर्द कर देती है या साधु संतोके हवाले कर लिये जाते हैं। ऐसे संयुक्तमास को 'संसर्व कर देती है। हेमचंद्रका चरित्र-लेखक लिखता है कि पूर्वमें बहुतसे जैनी साधु ऐसीही ब्राह्मण कहते हैं। कार्तिकके आगे चार महीने नहीं बढ़ते और अश्विन के पहले के महीनों का वेश्याओंसे उत्पन्न थे। क्षय नहीं होता। - जब पुरुष और स्त्री परस्पर भिन्न जातिके होते पूर्व इतिहास-चांद्र वर्ष और सौर वर्षका हैं और एक साथ रहते हैं और उन्हें संतति होती मेल बैठानेके लिये अपने यहाँ औसत बत्तीस है उसका अवश्यही संरक्षण होता है। ऐसी तैंतीस चन्द्रमासके बाद चन्द्रवर्ष में एक महीना संतति विदुर जाति की संख्या बढ़ाती है। ब्राह्मण अधिक बढ़ा दिया जाता है जिसे अधिक मास पुरुष और ब्राह्मणही स्त्रीसे होनेवाली संततिने कहते हैं। चन्द्र और सौर वर्षाका प्रचार हमारे EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE