पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/२९५

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ब्रमुण ,स्थापति प्तानकौश ( अ ) २७२ अंपुष्प मनस्वी।

श्चप्रे विशेषता दिखाई पड़नेगालो पात यहहै कि ठे से ) से हुई होगी । इन धध्दस्पनियोंकै शरीरों. इसके सिरेके पास षर्धभान अग्र पिंक्षईएंदृह्मगृ 1 कौरत्तजा हरो षनस्पतिर्योंकी अपेक्षा किंचित् है । छंत षर्षमान अग्रके पास एक देंगुरोफे ३ उग्रंफीटिफीओसीहँ 1 अपवादात्मक कुद पन- समान फूलता है ओर गाह अलग यश्चा है ओर ३ स्पतियरैंकी यहि छोड़ दिया जग्य तो यह जाति उत्तसेशाज्ञासेयार होती है : असंयोगिक उत्या- रै खारे पानीमें क्तित्ताहै. ऐसा कापृचेबै कोई राणा इनमें सिरैतें पासचीपेज्ञा में बहुत जवजपेसिपाँ नहीं है । समुइकै अभिज्ञ वंदे षश्चागौपै इन व;- डटपब्र होंतीहँ और उनमें भी घातकै समान दो स्तियोकौ पूणोंषस्पा प्राप्त होती है । द्रनमैं की माँतन्तु होते हैं । इन जनन पेशिथोंके बाहर दृ भिन्न मिन्नननस्पतिर्मोंकै स्तीदृमैंमट्स वैविध्य होने पर' उनसे क्यों षदृस्पति तैयार होती है ५२८' ) दिखलाई पशुता है । सासे सारे प्रकारुकौ नन-

का गोगर्सभष उत्पादन ऊसिंकाके क्षशाव्र ६१८ समान तरुवोंके संयपैशासे होता है 1

समुद्र मैं मिलने डालो कुछु जातियों की पेशि- यों पर चूने के युदृ' बैठे रहने है और मूस कारण थे बहुधा र्युगेकै समान देख षद्भठे है । गुड्स प्रकारकी जकांतर्योंर्में योगर्तभाष उत्पादन समान तावीका न हो कर दो अच्छी तरह पहिचाने जाने वाले की लापा पुरुष ब्रदृपौहे संपौणहै होता है ।

स्पतियोंकै शरीर पेरित्रुर्पोकें एकके आगे रश रहने ! याचे तन्तुर्वीके होते हैं । किसी फिसीमैं डालिंथदृ'

निकलती है और जिली फिसौमे नहीं निकलती । दु पमुतेरीवा स्पाशु अनेक पेसिपीका नलोफे समान ५ पोला और गोल होता है । उसमें बहुत खी डालियाँ निकली रहती हैं । फुढफा स्याणु अनेक पैशौमष, चिपद्वा ओर पत्ता रहता है । इस प्रकार के दीनों पिभार्गर्मि बुद्धि एक अग्रस्थिरु। वर्धमान

एँष्णपौ तरह पृ पैशीमय पुदृहाँच्चेशिपृ (द्वाम्पादृहाँड्ड

मृस्मफौपैडा ( ठेएँल्यर्रेश्यग्रद्रटमृक्ष ) के भेदीएँकौ' २ पेशी ( 3हू1एँ०31ठ्ठा०९डा1।1हुँ ८८३11 ) से होती है । कुछु दुबैस्पि। हुँडाटाकैश्चिर्शज्जश्वेदुदृकों इक्वी मीठे पानी ' पनस्पतियाँ गंश्र्वहैभी होती हैं । पैश्वियोमैं बहुधा र अस्व ज नपरु तो । उसी जो पककेन्द्र दीग । रंजित द्रव्य शरीर बहुधा ब्रन्नपेसिग्रा तैयार होती हैं ले दूखरोंकेसण खव 1 गोल या टेढा मेहा होता है उसमें र्द्धयनी रंगफा

हैं. होंदुशाश्लेकैषख सिरैकौ दृ द्रग्यबैदुसा हैपिवुर क्यों हुंश्यणहैंवनस्पतिमाँ

र । सय ष सिरेंकौ येशी भी तप रंगजी ती । अच्छा

फूलती है ओर फिर दखने ज़नभथेशी तैयार होती प्रकारसे पृणोंधस्थायें षहुंचंदै हुई वत्रस्पतियोंकौ हुँफैगपेदृगैरेंमैंनों हुंरैंबीदीती हैं कि विना 1 हँरीरुरथनापैग़वङ्ककोंसुधारुणब्बे दिखलारैद्रहुती यन्त्रका सहायता डाट्वेंणलेऐबौ जा । क्या पै श ब्रहसर्वव्र। बाहा का साखी है । इस जातिका बागलंभश उम्पाव्रज 3 साम्भीफण करती है । दो जातियोंर्मे नलनीकै भी मिल है 1 प्रथम पैशीमैं हो ऊँचे भाग ओह ट्वे सदृश ज्ञारिकाकी तरह एक पेज्ञाजाल रेम्न पड़ता उनके यीमृमें पेशी' फमृमृ मृस्मन्न होताहै ३३१ ' है और षदृग्रमुघा' ओजसव्रव्व ( हँद्गीबिधगप्रधा। ) फिर उस मूल गोले से भिन्न इंते हैं । थे ऊँचे बिधितरतर्का बहाकरलेजानेकाकामकरता होगा । इस्म ओकदुउनफौदुरें पैशिर्योंहींती . समुव्रवैहैंरदृने बाकी जातियाँ आकारमैं वहुत । उन ५ प एश पुंस टाप होते - झडी होती । उत्तर समुद्रमैं मिलने घाला शामि- हैं और द्रुसहूँवै म रशदी अंत त्तत्य होता है । ओटा: । नेरिया ( छिणानुप्नव्रच्चाद्रपृ ) नामकी दनल्यलौका स्मनेबासी ८३३३३' नुमृगौअपृरकौ रुव्रचा फूटकर आफार चिकने बोर फैले मुये पशैके लाश ज्जपैणोंमैं शौम्नत्वकै खाभनहीं एक जिड़वदृरौकै ! राताहै । उसमें एफडरठल भी रहता है । यह मृषा" प्रशस्त आह होनी है । फिर पुंस्तात्रफी । षत्ता १० कीट लम्बा रहता है और उसका डला। पेशी फटती है और पृस्वत्व बाहर गिरते - आधा इंचफा मोटा रहता है । दक्षिण बुध महा हैं । और ब्रनमैंका एकदुमैंवखिड़कीशेभीतर । सागामें उषानेवस्नालंरे ऐसी ही एक वनस्पति है । जाकर स्वग्लित्त्वसैसंणोंग्लै एक डापैनंपैशी तैयार वह त्रहर्मे उगती है वहाँ एक जाडा बनाती है और ३३3३ है और उसपर एक ८३८ आता है । रस वहींसै उसकी शाखा ऊपर पृष्ठ भागषर आकर पैशौसै फिर आगे एक नंगी’ वनस्पति तैयार प९शितौहे । येशाब्रगि २०० से च्चेरूह्न २१५ फीट होती । _ व्रफशन्धीहोतपैरै। दक्षिणथुदभणसागरकौ टु)चण्डति(31३3'3१०9रै13'८हुँ९)'…सु'घनी कदूजाहूँहृमै तृक्षकै सदृश षड़टुंद्रहुँ । उनकैत्तने । यँहडा दृररापाण मो.एँ। र्मारन ऊनैषढ़ । खरी पुन्न

1 जातियां इससे भीखुडी होतीहैं। दैन सबके