पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/३२७

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अफगानिस्तान ज्ञानकोश (अ) ३०३ अफगानिस्तान रूसियोंका एक संयुक्त कमीशन नियत हुआ। पितासे भी अधिक योग्यतासे इसने कार्य प्रारम्भ इसने बड़े परिश्रमके बाद अफगानिस्तानकी उत्तरी किया । लोकप्रियता प्राप्त करनेमें इसने पूर्ण सीमा, जो आज तक चली आती है निश्चित की। सफलता प्राप्त की। देशमें उसने ओर भी अनेक १८६१ ई० तक सम्पूर्ण देशमें शान्ति स्थापित हो सुधार किये। परराष्ट्रोंके सम्बन्धमें उसकी नीति गई थी और अमोरकी सत्ता सर्वत्र मानी जाने भी उसके पिताके ही समान थी। १६०७ ई० में लगी थी। १८६५ ईमें अमीरने अपनी सेनाकी उसने भारतकी यात्रा की जिससे उसे अंग्रेजोंकी सहायतासे काफिरिस्तान पर विजय प्राप्त की। असीम शक्ति देखनेका अवसर मिला। भविष्यमें अफगानिस्तानका एक नकशा बनाया गया जिससे चलकर युरोपीय युद्धके समय इसका प्रभाव उसकी चौहद्दी निर्धारित होगई । अंग्रेजोंकी| अत्यन्त हितकर हुआ। अंग्रेजोसे उसकी गहरी श्रोरसे अमीरको एक बहुत बड़ा कर दिया जाता मित्रता होगई थी। १६०७ ई० के अगस्त मासमें था। 'अमीरको भारतसे युद्ध सामग्री तथा हथि- जो एङ्गलोरशियन सन्धि पत्र लिखा गया था। यार इत्यादि खरीदनेको भी अधिकार था । उसके आधार पर अंग्रेजोको अफगानिस्तानके अब अमीरने अपने देशके भिन्न भिन्न दलोको भीतरी कार्यो में हस्ताक्षेप करनेका कोई अधिकार अलग अलग करके शक्ति हीन बना डाला था। नहीं रहा। इसी भाँति रूसियोंने भी अफगानि- सेनाकी ओर भी इसका विशेष ध्यान था। युरो- स्तानको अपने प्रभुत्वकी कक्षाके बाहर मान पियन ढङ्गके अस्त्र शस्त्र एकत्रित किये। सेनोकी लिया। १९०८-१४ ई० का समय अफगानिस्तान क्षाके लिये भी युरोपियन नियत किये। नये के लिये पूर्ण शान्ति तथा उन्नतिका था। उसी नये कर लगाये गये तथा सेना बढ़ाई जाने लगी समय अनेक आर्थिक, सैनिक तथा सामाजिक उनको उचित वेतन दिया जाने लगा। जिन दलों सुधार देशमें हुए। प्रजाको अनेक सुविधाये दी से अमीरको भय था उनका पूर्ण रूपसे विध्वंस गई। स्कूल, दवाखाने, तार, टेलीफोन, रेल कर डाला गया। इस.भाँति अनियन्त्रित सत्ता इत्यादि अनेक उपयोगी कार्य देशमें किये गये। स्थापित होगई। उसने दण्डका विधान 'अत्यन्त सड़कों इत्यादि का. उत्तम प्रबन्ध किया गया। बटोर रक्खा था। यही कारण था कि वह देशमें अनेक सड़के बनवाई गई। हेलमण्ड, काबुल पूर्ण रूपसे शान्ति स्थापित कर सका था। वह इत्यादि अनेक नदियोंमें नहर बनवाकर कृषि राज्यके भीतरी व्यवस्थामें किसी परराष्ट्र का | विभाग को अनेक सुविधा दी गई। हस्ताक्षेप नहीं चाहता था। सत्य तो यह है कि. १९११ ई० में जब इटली और टर्कीमें युद्ध वह अंग्रेजों पर भी पूर्ण विश्वास नहीं करता था. श्रारम्भ हुआ तो एक ही धर्मवाले होनेके नाते न वह देशके भीतर उनको अधिक हस्ताक्षेप हो | उन्होंने टर्कीको धनसे समुचित सहायता की। करने देना चाहता था। यही कारण था कि | १६१४ ई० में जब योरपमें महासमर श्रारम्भ हुआ व्यापारिक सुविधा इत्यादि होजाने की सम्भावना | तो भारत सरकारने अमीरसे भी सहायताको होनेपर भी उसने अपने देशमें अंग्रेजोको रेल तार | प्रार्थना की। अमीरने भी वचन देदिया था कि इत्यादि नहीं लगाने दिया। इतना सब होने पर जब तक अफगानिस्तानकी स्वतन्त्रता पर कोई भी वह रूसियोंके मुकाबलेमें अंग्रेजोको अधिक बाधा नहीं देख पड़ेगी तबतक वह अंग्रेजोका ही विश्वास की दृष्टिसे देखता था। साथ देगा। जब टर्की जर्मनके साथ सम्मिलित - हबीबुल्लाखाँका राज्यारोहण तथा शासन काल होकर अंग्रेजोके विरुद्ध युद्ध करने पर तत्पर १६०१ ई. में अब्दुलरहमानकी मृत्युके तीसरे | हुआ तो कुछ कुछ आशंका होने लगी थी। किन्तु दिवस इसका बड़ा तथा सुयोग्य पुत्र हबीबुल्ला अँग्रेजोंके समझाने पर कि इस युद्धसे कोई भी खाँ गद्दी पर बैठा। सम्पूर्ण सरदारों धार्मिक-धार्मिक सम्बन्ध नहीं है न कोई दल किसीके संस्थाओं तथा सेनाने इसे अपना 'अमीर' मानने भी धार्मिक संस्थाओं अथवा पवित्र स्थानोंको में कोई आपत्ति नहीं की। लोगोंकी धारणा थी ही हानि पहुचावेगा, तब कहीं जाकर अमीरने युद्ध कि जिस सुव्यवस्थाका श्रारम्भ अब्दुलरहमानने में टर्कीकी सहायता देनेसे हाथ खींचा। सत्य तो किया था इसका अन्त भी उसीके मृत्युके साथ | यह है कि अमीरकी स्थिति स्वयं ही अत्यन्त विकट हो जावेगा क्योंकि इसके सुचारु सञ्चालनकी होरही थी। एक ओर तो अपने देशवासियों योग्यता तथा क्षमता किसीमें नहीं देख पड़ती थी द्वारा टर्की की सहायता करनेके लिये वाध्य किये किन्तु वास्तव में यह लोगोंका भ्रम ही रहा। अपने जाना, दूसरी ओर रूस जर्मन इत्यादि राजदूतों