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हिन्दू धर्म और उसके चार योग
 

इस मनोयोग—मन की एकाग्रता—के कारण नहीं सुनेंगे। जितना ही अधिक आप अपने मन को एकाग्र कर सकेंगे उतना ही अधिक मेरी बातों को आप समझेंगे। और जितना ही अधिक मैं अपने प्रेम और शक्तियों को एकाग्र करूँगा उतने ही अधिक समुचित शब्दों में, मैं आपको जो कुछ बताना चाहता हूँ, उसे समझा सकूँगा। एकाग्रता की यह शक्ति जितनी अधिक हो उतने ही अधिक ज्ञान की प्राप्ति होगी; क्योंकि यही एक उपाय ज्ञानप्राप्ति का है। अत्यन्त नीच, जूता साफ करनेवाला भी यदि अधिक एकाग्रता धारण करे तो जूतों को और अच्छा पॉलिश कर सकता है; रसोइया एकाग्रता के साथ और भी अच्छी तरह रसोई पका सकता है। धन कमाने में, ईश्वर की पूजा करने में या और कोई काम करने में, एकाग्रता की शक्ति जितनी प्रबलतर होगी उतना ही उत्तम वह कार्य सम्पन्न हो सकेगा। यही एक पुकार है, यही एक खटखटाहट है जो प्रकृति के दरवाजों को खोलता है और प्रकाश की बाढ़ को बाहर ला देता है। यह एकाग्रता की शक्ति ही ज्ञान के कोषगृह की एकमात्र कुंजी है। राजयोग की विधि प्रायः केवल इसका ही वर्णन करती है। अपने शरीर की वर्तमान स्थिति में हम इतने अस्थिरचित्त हैं कि मन अपनी शक्तियों को सैकड़ों प्रकार की वस्तुओं में व्यर्थ खो रहा है। ज्योंही मैं अपने विचारों को शान्त करने और मन को ज्ञान के किसी एक विषय पर एकाग्र करने का प्रयत्न करता हूँ, त्योंही मेरे मस्तिष्क में सहस्रों अनिष्ट आवेग घुस पड़ते हैं,

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