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६१२ ] [ कबीर

                                    (१६६)

सेइ मन समझि समर्थ सरणांगता,जाकी आदि अति मधि कोइ न पावै| कोटि कारिज सरै देह गुंण सबजरै,नैक जो नांव पतिब्रत आवै||टेक|| आकार की ओट आकार नहीं ऊबरै,सिब बिरंचि अरु बिष्णु तांई| जास का सेवक तास कौं पाइहै,इष्ट कों छांडि आगे न जांहीं|| गु णमई मूरति सेई सव भेष मिली,निरगुण निज रुप विश्रांम नांही| सनेक जुग बदिगी बिबिध प्रकार की,अति गुण का गुंणहीं समाहीं|| पांच तत तीनिगुण जुगतिकरि सांनियां,अष्ट्खिन होत नहीं क्रम काया| पाप पुन वीज अंकूर जांसै मरै,उपजि बिनसै जेती सर्ब माया|| क्रितम करता कहै परम पद द्यूं लहै,भूलिभ्रम मैं पडचा लोक सारा| कहै कबीर रांम रमिता भजै, कोई एक जन गए उतरि पारा||

  शब्दार्थ-पातिव्रत=एकनिष्ठता| त्रिगुण्मयी  मूर्ति=प्रतिमा| निजु=

ठीक-ठीक| साना=मिश्रित| कृत्रिम=बनावटी, प्रतिमा आदि| कोई-एक विरना|

संदर्भ-कबीर दास राम नाम की महिमा का प्रतिपादन करते हैं| भावार्थ-रे मन, तू इस समर्थ भगवान की शरण मे जाकर सेवा कर जिसका, आदि अत और मध्य कोई नहीं पा सकता है| पातिव्रत धर्म के समान बुरी निष्ठा के साथ उसका नाम भजने से तुम्हारे करोडों कार्य सिद्ध होंगे और शरीर की समन्त आवश्यक्ताएँ पूरी हो जाएँगी (भाव यह है कि उसका नाम स्मरण करने से तुम्हरा परलोक सुधर जाएगा और इस लोक में सुख की प्राप्ति होगी)| भले ही आकार (पूर्ति) शिव, ब्रह्मा और विषणु तक का हो, परन्तु आकार (प्रतिमा, मूर्ति आदि) की पूजा करने से आकारधारी इस शरीर का उद्धार सम्भव नहीं है| जो भगवान के जिस स्वरूप की पूजा करता है, वह उसी स्वरूप को प्राप्त होता है| वह उनके आगे नहीं जा सकता है,क्योकि आदर्श ही साध्य होता है|भगवान के सगुण स्वरूप की पूजा करने पर भक्त को सब प्रकार के भेंपों की प्राप्ति हो सकती है,परंतु निर्गुण में एवं आत्मस्वरूप में उसकी प्रतिष्ठा नहीं हो सकती है|अनेक युगों तक विविध प्रकार की प्रतिमाओं की पूजा करने पर भक्त सगुण में ही समाहित होता है| शरीर निर्माण के लिए पाँचों तत्वों तथा तीनों गुणों को युक्तपृवर्क मिलाया गया है| इन आठों के बिना शरीर की उत्पत्ति नहीं बैठता है| पाप और पुण्य के बीजों के अंकुर (अर्थात पाप-पुण्य के फन) इस शरीर में उत्पन्न होते हैं और इसमें ही मरते हैं अर्थात इस शरीर को ही पाप-पुण्य के पात्र भोगने पडते हैं| इस जगत में जो कुछ भी उत्पन्न होता है और नष्ट होता है,नव माया का ही प्रनार है| जब लोग इन बनाई नैइ प्रतिमाओं को ही परमात्मा करने हैं तब फिर उनको अव्यक्त परम पद की प्राणि निग प्रकार हो नयनी है|यह मान मनार घम सोपाधिक को ही परम