पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/६२३

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२८४ ] [ कबीर की साख भावार्थ-कायर व्यक्ति बहुत बढ़ चढ़ कर बातें करते रहते हैं, सच्चे शूर कभी भी बकवास नहीं करते वे तो काम को करके ही दिखाते हैं । कार्य पड़ने पर हो यह जाना जा सकता है कि शूरवीर अथवा कायर किसके मुख पर विजय की आभा चमकती है। विशेष—तुलना कीजिए-- सर समर करनी करहि, कहि न जनावहि आपु ।। विद्यमान रनपाइ रिपु, कायर कथहि प्रलापु ।। मानस--वालकडि शव्दार्थ-पमविही = वढ चढ़कर बाते करना । नूर = तेज ।। जाइ पूछौ उस घाइलै', दिवस पीड़ निस जाग ।। बांहण-हाराजांणिहै, कै जाणे जिस लाग ।।१५॥ संदर्भ -- प्रभु के प्रेम की पीर का अनुमान गुरु को ही हो सकता है और अनुभव केवल साधक को ।। | भावार्थ-कबीरदास जी कहते हैं कि उस घायल व्यक्ति से उसकी पीडा की दशा पूछो जो अपनी पीड़ा से दिन में व्यथित रहता है और रात मे जागता रहता है। उसके हृदय की वेदना को वाण चलाने वाला (ईश्वर) ही जान सकता है अथवा वह जान सकता है जो ईश्वर प्रेम के बाणो को खा चुका हो। । विशेष—तुलना कीजिए-- घायल की गति घायल जाणै और न जाणै कोय । ---मोरा शब्दार्थ-बहिणहारा = बाण चलाने वाला। घाईल घूमैं गहि भया, राख्या रहै न ओट । जतन कियां जीवै नहीं, बणीं मरम की चोट ।।१६॥ संदर्भ-ईश्वर के प्रेम को समझने वाला साधक और किसी के आश्रय मे रहना नही चाहता है। भावार्थे--ईश्वर के प्रेम-वाण का घायल हुआ साधक रुद्ध कण्ठ से घूम रहा है । अन्य किसी की शरण में रहना उसे अच्छा नहीं लगता। उसे जीवित रखने के अनेक प्रयत्न किए गए किन्तु वह जीवित रहना नहीं चाहता उसके मर्मभेदी चोट लग चुकी है। शब्दार्थ-राख्या = रखने पर । ओट = छिपाने पर।