पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

स्वभाव को न समझ पाने वाले गजेटियर और जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, उस राज और समाज को, उसकी नई सामाजिक संस्थाओं तक को यह क्षेत्र "वीरान,वीभत्स, स्फूर्तिहीन और जीवनहीन" दिखता है। लेकिन गजेटियर में यह सब लिख जाने वाला भी जब घड़सीसर पहुंचा है तो "वह भूल जाता है कि वह मरुभूमि की यात्रा पर है।”

कागज में, पर्यटन के नक्शों में जितना बड़ा शहर जैसलमेर है, लगभग उतना ही बड़ा तालाब घड़सीसर है। कागज की तरह मरुभूमि में भी ये एक दूसरे से सटे खड़े हैं-बिना घड़सीसर के जैसलमेर नहीं होता। लगभग ८०० बरस पुराने इस शहर के कोई ७०० बरस, उनका एक-एक दिन घड़सीसर की एक-एक बूंद से जुड़ा रहा है।

रेत का एक विशाल टीला सामने खड़ा है। पास पहुंचने पर भी समझ नहीं आएगा कि यह टीला नहीं, घड़सीसर की ऊंची-पूरी, लंबी-चौड़ी पाल है। जरा और आगे बढ़ें तो दो बुर्ज और पत्थर पर सुंदर नक्काशी के पांच झरोखों और दो छोटी और एक बड़ी पोल का प्रवेश द्वार सिर उठाए खड़ा दिखेगा। बड़ी और छोटी पोलों के सामने नीला आकाश झलकता है। जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते हैं, प्रवेश द्वार से दिखने वाली झलक में नए-नए दृश्य जुड़ते जाते हैं। यहां तक पहुंच कर समझ में आएगा कि पोल से जो नीला आकाश दिख रहा था, वह तो सामने फैला नीला पानी है। फिर दाई-बाई तरफ सुंदर पक्के घाट, मंदिर, पटियाल, बारादरी, अनेक स्तंभों से सजे बरामदे, कमरे तथा और न जाने क्या-क्या जुड़ जाता है। हर क्षण बदलने वाले दृश्य पर जब तालाब के पास पहुंचकर विराम लगता है, तब आंखें सामने दिख रहे सुंदर दृश्य पर कहीं एक जगह टिक नहीं पातीं। पुतलियां हर क्षण घूम-घूम कर उस विचित्र दृश्य को नाप लेना चाहती हैं।

पर आंखें इसे नाप नहीं पातीं। तीन मील लंबे और कोई एक मील चौड़े आगर वाले इस तालाब का आगोर १२० वर्गमील क्षेत्र में फैला हुआ है। इसे जैसलमेर के राजा महारावल घड़सी ने विक्रम संवत १३९१ में यानी सन् १३३५ में बनाया था। दूसरे राजा तालाब बनवाया करते थे, लेकिन महारावल घड़सी ने तो इसे खुद बनाया था। महारावल रोज ऊंचे किले से उतर कर यहां आते और खुदाई, भराई आदि हरेक काम में खुद जुटे रहते।

यों यह दौर जैसलमेर राज के लिए भारी उथल-पुथल का दौर था। भाटी वंश गद्दी की छीनाझपटी के लिए भीतरी कलह, षडयंत्र और संघर्ष से गुजर रहा था। मामा अपने भानजे पर घात लगाकर आक्रमण कर रहा था, सगे भाई को देश निकाला दिया जा रहा था तो कहीं किसी के प्याले में जहर घोला जा रहा था। राजवंश में आपसी कलह तो थी ही, उधर राज और शहर जैसलमेर भी चाहे जब देशी-विदेशी हमलावरों से घिर जाता था और जब-तब पुरुष वीरगति को प्राप्त होते और स्त्रियां जौहर की ज्वाला में अपने को